06 August, 2017

डोकलाम और इसका महत्व

               डोकलाम और इसका महत्व

आख़िर भूटान का क्षेत्र डोकलाम हमारे लिए इतना अहम क्यों है? आजके आलेख में मैं पूरे मुद्दे को स्पष्ट करना चाहूंगा , आलेख लम्बा हो सकता है लेकिन याद रखना काफी महत्वपूर्ण हैं।

भूटान का डोकलाम पठार भारत (सिक्किम), चीन, भूटान के ट्राइजंक्शन पर है। यह नाथुला दर्रे से महज़ 15 km दक्षिण में तथा चुम्बी घाटी के सटा हुआ क्षेत्र हैं। इस इलाके में चीन की दखलंदाजी और सड़क बनाकर अपनी स्थिति मजबूत करने से भारत और भूटान दोनों देशों को आपत्ति है।

हाल ही में चीनी सेना द्वारा डोकलाम क्षेत्र में पहले भारतीय सेना के मौजूदा बंकर ध्वस्त किये , उसके उपरांत उस क्षेत्र में सड़क निर्माण का कार्य प्रारंभ किया। इस सड़क का मकसद है 'ट्राइजंक्शन' को हमेशा के लिए शिफ्ट कर देना हैं। अगर चीन सड़क बनाने में कामयाब हो जाता है तो चीन का डोका ला पर दावा और मजबूत हो जाएगा। शत्रु और निकट पहुंच जाएगा। ऐसा भारत कभी नहीं चाहता इसलिए भारतीय सेना ने इसके प्रतियुत्तर में चीनी सेना के सड़क निर्माण कार्य को रोक दिया और मानव श्रृंखला बना दी गयी हैं। जो कि अभी तक बनी हुई है। वार्ताओं, धमकियों तथा दबाव बनाने का दौर चल रहा है दोनों और से , लेकिन अभी तक समस्या जस की तस बनी हुई हैं।

चीन का डोकलाम पठार पर सड़क बना देना उसके सैनिकों को सिलीगुड़ी कॉरिडोर के और करीब पहुंचा देगा। चीन ये नहीं मानता है कि डोकलाम पठार का 'डोका ला' इलाका 'ट्राइजंक्शन' है। चीन 'डोका ला' इलाके को अपना हिस्सा मानता है और भूटान इसे अपना हिस्सा मानता हैं।

"डोकलाम पठार" और उसका विवादित 'डोकला' क्षेत्र  भारत के लिए आख़िर क्यों अहम है? इसका उत्तर हम निम्न दो बिंदुओ की सहायता से समझने का प्रयास करते है-
१. डोकलाम का पठार भारत के "चिकन नेक"
‘चिकन नेक’ ऐसे इलाके को कहते हैं जो सामरिक रूप से किसी देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, लेकिन संरचना के आधार पर कमजोर होता है। "सिलीगुड़ी कॉरिडोर" ऐसा ही क्षेत्र है। इसलिए इस क्षेत्र को चिकन नेक कहा जाता हैं।】के निकट अवस्थित हैं। ये पूरा इलाका सामरिक रूप से भारत के लिए बेहद अहम है।

दरअसल डोकलाम से सिलीगुड़ी कॉरिडोर की दूरी महज 50 किलोमीटर है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर ऐसा इलाका है, जिससे शेष भारत, नॉर्थ ईस्ट के 7 राज्यों से जुड़ता है। 200 किलोमीटर लंबे और 60 किलोमीटर चौड़ा ये कॉरिडोर देश की एकता के लिए काफी जरूरी है। साथ ही सिलीगुड़ी कॉरिडोर साउथ की तरफ से बांग्लादेश और नॉर्थ की तरफ से चीन से घिरा है। ट्रेन, रोड नेटवर्क से संपन्न ये इलाका चीन के किसी भी संभावित हमले में सैनिक साजो-सामान और दूसरी जरूरी चीजों की आपूर्ति के लिए अहम है। अगर चीन ने डोकलाम में सड़क बना ली, तो दुश्मन हमसे और करीब हो जाएगा , ऐसे में युद्ध जैसी स्थितियां अगर भविष्य में उतपन्न होती है तो चीनी सेना चिकन नेक पर कब्जा करके न केवल उत्तर पूर्वी भारत का शेष भारत से सम्पर्क  खत्म कर सकता है बल्कि भारतीय सेना की पहुंच को भी बाधित कर देगा।

२. भूटान के भारत के साथ खास रिश्ते हैं और 1949 की संधि के मुताबिक, ये विदेशी मामलों में भारत सरकार की ‘सलाह से निर्देशित’ होगा। 1949 में हस्ताक्षर की गई संधि और फिर 2007 दोहराई गई संधि के मुताबिक, भूटान के भू-भाग के मामलों को देखना भी भारत की जिम्मेदारी है। ऐसे में अगर चीन, भूटान के किसी भी हिस्से पर दावा करता है या उसकी संप्रभुता में दखल देता है, तो भारत के लिए भी यह जरूरी हो जाता है हस्तक्षेप करना।

इस प्रकार के महत्व को देखते हुए डोकलाम मामले में भारत से कड़े कदम की उम्मीद की जा रही थी हुआ भी वही, भारत सरकार ने अतीत की रणनीति के विपरीत इस बार न केवल हर मोर्चे और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कड़ा विरोध किया बल्कि सैन्य जमावड़ा पीछे हटाने की बजाय और बढ़ा दिया। उम्मीद करते है कि जल्द ही सकारात्मक और शान्ति पूर्वक तरीके से यह मुद्दा सलटा लिया जाएगा।

आभार
Ganpat Singh





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