09 December, 2017

अंतर्राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था [International Export Control Regime- IECR]


  1.                              द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत हथियारों की होड़ काम करने; परमाणु तकनीकी का सही एवं सन्तुलित उपयोग करने; विध्वंशक रासायनिक और जैविक हथियारों के गलत उपयोग को रोकने तथा इन हथियारों की पहुंच सरकारों तक सीमित रखने ताकि असामाजिक तत्वों के हाथों में यह हथियार न आ जाए, हेतु विभिन्न देशों की अगुआई में कुछ उपाय यथा- अंतरराष्ट्रीय सन्धियों, समझौतों और व्यवस्थाओं का आगाज़ किया गया।  इन उपायों को सम्मिलित रूप से अंतर्राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था कहा जाता हैं।



इन अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण व्यवस्था में मुख्य रूप से चार समझौते एवं व्यवस्थाएँ की है जोकि इस प्रकार हैं-

१.परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह [NSG]:-
  • परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह का गठन भारत द्वारा मई,1974 में किये गए परमाणु परीक्षण ’स्माइलिंग बुद्धा’ के पश्चात् ‘प्रतिक्रिया व परमाणु प्रतिरोध के लिए’  किया गया | इसके निर्माण के समय इसमें 7 सदस्य थे जबकी वर्तमान में 48 देश इसके सदस्य है ,अर्जेंटीना इसका नवीनतम सदस्य है जो 2015 में इसका सदस्य देश बना। 
  • एनएसजी का प्राथमिक और सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य परमाणु तकनीकी ,परमाणु पदार्थो और सामग्री के आयात-निर्यात पर नियंत्रण स्थापित करना ताकि परमाणु हथियार के प्रसार को  नियंत्रित किया जा सके | 
  • परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में शामिल होने के लिए सदस्यता के इच्छुक देश द्वारा NPT पर हस्ताक्षर करना सैद्धांतिक रूप से आवश्यक हैं |
  • NSG आम सहमती से कार्य करता हैं | किसी नये सदस्य को शामिल करने के लिए सभी देशों की सहमती आवश्यक हैं | याद रहे चीन हर बार भारत को सदस्य बनाये जाने का विरोध कर रहा हैं , यही कारण हैं की भारत NSG का अब तक सदस्य नहीं बन पाया

2.वास्सेनर व्यवस्था [Wassenaar Arrangement] :-

  • वासेनर एक स्थान हैं जो की नीदरलैंड के शहर हेग की निकट अवस्थित हैं | यहाँ पर शीत युद्धोपरांत वर्ष  1996 में एक बहुपक्षीय निर्यात नियन्त्रण समझौता हुआ था , जिसे आगे चलकर वास्सेनर व्यवस्था नाम दिया |चूँकि यह कोई संधि या समझौता नहीं हैं इसलिए सदस्य राष्ट्रों के लिए बाध्यकारी नहीं है| इसका मुख्यालय आस्ट्रिया की राजधानी वियना में है जहाँ सामान्यतया प्रतिवर्ष बैठक होती हैं |
  • वास्सेनर व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय जगत में ‘पारम्परिक हथियारों के स्थानांतरण और वस्तुओ के दोहरे उपयोग में पारदर्शिता’ और उत्तरदायित्व बनाये रखने के लिए एक ‘बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रक व्यवस्था’ है; वर्तमान में इसमें 42 देश सदस्य है | वियना की 7 दिसम्बर की बैठक में भारत को इस व्यवस्था का 42 वा सदस्य राष्ट्र घोषित किया |
  • इस व्यवस्था  का अंग होने के लिए एक राष्ट्र से कई उम्मीदें होती है , जैसे- 
  1. देश जो NSG ,MTCR ,या ऑस्ट्रेलिया ग्रुप में शामिल होने की योग्यता रखता हो ;
  2. जो हथियारों और परमाणु अप्रसार की नीति में विश्वास रखता है ,
  3. जिसने ‘परमाणु अप्रसार संधि’ पर हस्ताक्षर किये हो |
  • चीन और इजराइल अभी तक वास्सेनर व्यवस्था के अंग नहीं हैं | वास्सेनर व्यवस्था का अंग बनने बाद भारत की NSG की दावेदारी और मजबूत होगी | इस व्यवस्था का अंग बनने से भारत को रक्षा और अन्तरिक्ष कार्यक्रमों के लिए अत्याधुनिक और संवेदनशील प्रौद्योगिकी का आदान प्रदान की छूट मिल सकेगी |

3.ऑस्ट्रेलिया समूह [Australia Group] :-
  • जब इराक ने 1984 में रासायनिक हथियारों का प्रयोग किया तब रासायनिक व जैविक हथियारों के आयात-निर्यात और प्रयोग पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए 1985 में ऑस्ट्रेलिया ग्रुप बना | इसे बनाने की पहल ऑस्ट्रेलिया द्वारा की गयी थी इसलिए इसे ऑस्ट्रेलिया ग्रुप कहा जाता हैं |  इसके सचिवालय का प्रबंधन भी ऑस्ट्रेलिया ही करता है | 
  • इसकी पहली बैठक सितम्बर 1988 में बेलग्रेड के ब्रूसेल्स में हुई | प्रारंभ में इसमें 15 सदस्य थे,वर्तमान इसमें 42 देश सदस्य है | पेरिस में प्रतिवर्ष इस समूह की बैठक का आयोजन होता हैं| 
  • भारत ने इसकी सदस्यता के प्रयास बहुत समय पहले से ही प्रारम्भ कर दिए थे लेकिन अभी तक सफलता प्राप्त नहीं हो पाई हैं | लेकिन वास्सेनर व्यवस्था का सदस्य बनने के बाद अब लगभग तय हो गया है की भारत इसी वर्ष ऑस्ट्रेलिया समूह का हिस्सा बन जाएगा | चीन अभी भी इस समूह का हिस्सा नहीं हैं|
4.प्रक्षेपास्त्र तकनीक नियंत्रण व्यवस्था [ Missile Technology Control Regime ] :-
  • एमटीसीआर उन देशो का एक अनौपचारिक संगठन या समूह है ,जो प्रक्षेपास्त्र या मानवरहित विमान प्रौद्योगिकी से संपन्न है | इसका गठन विकसित और औद्योगिक देशो के समूह जी-7 के द्वारा मिसाइल्स जो की परमाणु,जैविक,और रासायनिक पदार्थो को ले जाने में सक्षम हो,तथा मानवरहित विमान तकनीक के प्रसार पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए 1987 में किया गया |  इसमें पहले 34 देश सदस्य थे | 27 जून 2016 को भारत इसका 35 वा सदस्य बना |
  • इसका सदस्य राष्ट्र बनने के बाद भारत मानव रहित ड्रोन खरीदने में सक्षम हुआ ; उच्च स्तरीय मिसाइल प्रौधौगिकी खरीद करने में सक्षम हुआ ; ब्रह्मोस जैसी मिसाइल निर्यात करने में सक्षम हुआ है साथ साथ NSG के लिए अपनी दावेदारी को मजबूत कर पाया | यह भारत का अंतर्राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था के किसी समूह का पहला प्रवेश हैं| याद रहे चीन अभी भी इसका सदस्य नहीं हैं |


                        अंतर्राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था के उक्त चार समूहों में से भारत अब तक MTCR तथा वास्सेनर समूह का सदस्य घोषित हो चुका हैं और उम्मीद हैं की इसी माह भारत ऑस्ट्रेलिया समूह का सदस्य भी बन जाएगा |अब आगे चुनौती रहेगी NSG का सदस्य बनने की | NSG  में भारत की सदस्यता का प्रबल विरोधी चीन है| 
बिना NPT पे हस्ताक्षर किये इस प्रकार विभिन्न समूहों का सदस्य बनना यह दर्शाता हैं की विश्व के प्रमुख देश भारत पर अथाह भरोसा किये हुए हैं | 
                      यही भरोसा और भारत के इन संस्थानों में प्रवेश के प्रयास चीन की बौखलाहट का कारन बने हुए हैं | राष्ट्रीय नेतृत्व को चाहिए की इन प्रयासों को और ऊंचाई प्रदान करें ताकि NSG और संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यता तक हमारी पहुंच सुनिश्चित हो सके| 
                     लगातार २ वर्षों में २ प्रमुख व्यवस्थाओं -MTCR एवं वास्सेनर व्यवस्था का सदस्य होना तथा हाल ही में हेग स्थित अंतरार्ष्ट्रीय न्यायालय में भारत के दलवीर भंडारी को दूसरे कार्यकाल के लिए चुना जाना निसंदेह गम्भीर और सार्थक नेतृत्व को दर्शाता हैं, लेकिन इन क्षेत्रों में राष्ट्र के नागरिकों को उच्च नेतृत्व से और अधिक उम्मीदे हैं|


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