01 May, 2017

नवीन वित्तीय वर्ष: समग्र विश्लेषण



नवीन वित्तीय वर्ष: समग्र विश्लेषण


                 पिछले 1 वर्ष से सरकार वित्तीय वर्ष को बदल कर कैलेंडर वर्ष के समान करने का प्रयास कर रही है। आज के आलेख में मैं वित्त वर्ष से संबंधित विभिन्न प्रकार की चुनौतियां, फायदें तथा उसकी पृष्ठभूमि में आप को ले जाऊंगा।



वित्तीय वर्ष की पृष्ठभूमि :
  • वर्ष 1867 के पहले तक भारत का वित्त वर्ष 1 मई से 30 अप्रैल हुआ करता था, लेकिन वर्ष 1867 में ब्रिटिश सरकार ने भारत का वित्त वर्ष बदलकर 1 अप्रैल से 31 मार्च कर दिया था।
  • इसकी मूल वजह यह थी कि उस समय ब्रिटिश शासन के अधीन सैंकड़ों उपनिवेश थे इन सभी उपनिवेशों की बैलेंस सीट, व्यापार वाणिज्य तथा आर्थिक नियंत्रण आसानी से स्थापित हो, इसलिए ब्रिटिश सरकार ने अपने सभी उपनिवेशों में 1 अप्रैल से 31 मार्च को वित्त वर्ष निर्धारित किया।
  • उसके बाद से पिछले 150 वर्षों से भारत का वित्त वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च बना हुआ है।
  • वर्तमान वित्त वर्ष की विभिन्न समस्याओं को देखते हुए सरकार ने शंकर आचार्य समिति गठित की। समिति ने सुझाव दिया कि वित्त वर्ष और कलैंडर वर्ष समान होने चाहिए। उसके बाद नीति आयोग ने भी सरकार को सुझाव दिया कि वित्त वर्ष और कलैंडर समान होने चाहिए।
  • इन सब को देखते हुए यह तय माना जा रहा है कि आगामी वर्षों में भारत का वित्त वर्ष 1 जनवरी से 31 दिसंबर निर्धारित होगा।
  • वित्तीय वर्ष का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 367(1) में उल्लेखित जनरल क्लोज एक्ट, 1897 में हुआ है। अतः वित्तीय वर्ष में बदलाव के लिए संविधान संशोधन की भी आवश्यकता हो सकती है।


नवीन वित्त वर्ष के सामने चुनौतियां :
  • औद्योगिक क्षेत्र में वित्तीय वर्ष बदलाव के परिणाम स्वरूप लेखा-जोखा कार्य, एकाउंटिंग सॉफ्टवेयर, कर प्रणाली तथा लोगों की कार्य प्रणाली में बदलाव करना होगा। जो कि काफी महंगा साबित हो सकता है।
  • विभिन्न प्रकार के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों को वर्तमान में 1 अप्रैल से 31 मार्च के अनुसार वसूला जाता है। वित्तीय वर्ष बदलाव की स्थिति में इन करों से संबंधित कानूनों में भी बदलाव करना होगा, जो कतई आसान नहीं होगा।
  • अगर वित्तवर्ष जनवरी से दिसंबर निर्धारित किया जाता है तो सरकार को बजट भी नवंबर में रखना होगा। इस हेतु आंकड़ों का संग्रहण भी सितंबर-अक्टूबर में करना पड़ेगा। जोकि एक आसान कार्य नहीं होगा।


नवीन व्यवस्था के फायदे :
  • वर्तमान में 156 देशों तथा विभिन्न वैश्विक आर्थिक संगठनों जैसे विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा संगठन के साथ आसानी से तालमेल स्थापित हो जाएगा। वर्तमान में विभिन्न आर्थिक संगठनों एवं 156 देशों का वित्त वर्ष जनवरी से दिसंबर होने के कारण भारत को कैलेंडर वर्ष के आंकड़े भी जारी करने पड़ते हैं तथा वित्तीय वर्ष के आंकड़े भी जारी करने पड़ते हैं। इससे काम में दोहरापन आता है और लागत भी बढ़ती है। नवीन वित्त वर्ष की अवधारणा आने के बाद यह दोहरापन नहीं होगा। जिससे वित्तीय संसाधन और मानव संसाधन का सदुपयोग संभव होगा।
  • विभिन्न प्रकार की बहुराष्ट्रीय कंपनियां का वित्त वर्ष एवं कैलेडर वर्ष समान है ऐसे में अगर भारत सरकार अपना वित्त वर्ष और कैलेंडर वर्ष समान करती है, तो इज ऑफ डूइंग बिजनेस संभव होगा।
  • वर्तमान के वित्त वर्ष में मानसून के प्रभाव का सही आकलन नहीं हो पाता जिसके परिणाम स्वरूप बजट आवंटन भी सही नहीं हो पाता। अंततोगत्वा इसका प्रभाव विभिन्न प्रकार की कृषि योजनाओं एवं निवेश योजनाओं पर प्रभाव पड़ता है।
  • वर्तमान में अप्रैल में योजना निर्माण का कार्य प्रारंभ होता जो कि जून तक पूर्ण होता है तथा सितंबर तक पैसे का आवंटन किया जाता है ऐसे में भारत के उत्तरी एवं उत्तर-पूर्व के 11 पहाड़ी राज्य जहां पर सितंबर से ही बर्फबारी प्रारंभ हो जाती है इन राज्यों में इस बजट का पैसा पूर्ण रूप से व्यय नहीं हो पाता। अगर यह व्यवस्था लागू हो जाती है तो इन 11 राज्यों में भी बजट का धन आसानी से व्यय किया जाएगा जिससे विकास की गति बढ़ेगी।
  • वित्तवर्ष में परिवर्तन से किसानों की आय वृद्धि की संभावनाएं भी बताई जा रही है। अभी तक यह व्यवस्था है कि दिसंबर तक फसल ले ली जाती है तत्पश्चात किसान को भुगतान मंडियों के द्वारा मार्च-अप्रैल महीने में किया जाता है जिससे उसकी क्रय शक्ति क्षमता कम हो जाती है। लेकिन नई वित्त वर्षीय अवधारणा से किसान को जनवरी में भुगतान प्राप्त हो सकेगा जिससे किसानों की क्रय शक्ति बढ़ेगी तथा अर्थव्यवस्था मज़बूत होगी।  

धन्यवाद

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