10 August, 2017

गोरखालैंड विवाद :एक समग्र दृष्टिकोण

       गोरखालैंड विवाद :एक समग्र दृष्टिकोण



गोरखा कौन है ? और इनका क्षेत्र कौनसा है ?
  • गोरखा मूल रूप से नेपाली एथेनिसिटी के लोग हैं | भारत एवं नेपाल के मध्य सीमाओं का खुला होने तथा प्रारम्भ से ही भारत नेपाल के मध्य एकत्व होने के कारण कई गोरखा भारत में स्थायी रूप से बस गये तथा अब मूल नागरिक के रूप में इनकी पहचान स्थापित हो गयी हैं| यह गोरखा जनसंख्या जिन क्षेत्रों में रहती है उन्हें गोरखा क्षेत्र कहा जाता हैं |

  • भारत में गोरखा क्षेत्र मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग तथा जलपाईगुड़ी क्षेत्र में हैं| दार्जिलिंग जिले के दार्जिलिंग क्षेत्र , कलिंगपोंग , मिरिक क्षेत्रों में गोरखा बहुमत में है वहीँ सिलीगुड़ी क्षेत्र में गोरखा आबादी मात्र 15% है जबकि 75% बंगाली जनसंख्या है| जलपाईगुड़ी में 30% गोरखा वहीँ 70% बंगाली तथा आदिवासी लोग आवासित हैं |


गोरखालैंड मांग का इतिहास :
  • गोरखाओं द्वारा लम्बे समय से अपने लिए अलग राज्य की मांग की जा रही हैं| जिसे गोरखालैंड नाम दिया गया हैं | यह मांग गोरखा संस्कृति को संरक्षण , अलग पहचान , परम्पराओं , तथा गोरखाओ की एकता से प्रेरित है| 
  • सर्वप्रथम यह मांग 1907 में उठी लेकिन अंग्रेजों द्वारा इसक दमन कर दिया गया | वर्ष 1935 में दार्जिलिंग को बंगाल का भाग बना दिया गया | आगे चलकर 1965 में यह जिन तब बाहर आया जब बांग्लादेश के अवैध प्रवासी निरंतर गोरखाओं के क्षेत्र में घुसपेठ कर रहे थे और राजनीतिक संरक्षण के चलते इन अवैध प्रवासियों को राशन कार्ड जैसी सुविधा उपलब्ध करवाकर स्थायित्व प्रदान किया जा रहा था |
  • 1986 से 1988 के मध्य गोरखालैंड की मांग बलवती होती गयी नतीजतन १२०० गोरखा मारे गये आन्दोलन में |तब भारत सरकार , बंगाल सरकार तथा सुभाष घिसिंग के नेतृत्व वाली गोरखा नेशनल लिब्रासन फ्रंट [२००७ में यह गोरखा जनमुक्ति मोर्चा बन गयी ]  ने मिलकर वर्ष १९८८ में गोरखा हिल परिषद का गठन किया | आगे चलकर यह परिषद वर्ष २०११ में गोरखा टेरीटोरियल एजेंसी के रूप में परिवर्तित कर दी गयी जिसका नेतृत्व गुरुंग ने किया |
  • २००५ में जब गोरखालैंड क्षेत्र को 6 वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रयास किया गया तब गोरखा नेताओं ने इसका कड़ा प्रतिरोध किया ,  ऐसे में गोरखा क्षेत्र इस अनुसूची में शामिल  नहीं हो पाया | वर्ष २०१३ में जब तेलंगाना को नये राज्य के रूप में दर्जा दिया गया तब पुनः गोरखालैंड की मांग बलवती हुई |
  • अभी हालिया २०१७ के घटनाक्रम में जब ममता बनर्जी सरकार ने गोरखा क्षेत्र में जहाँ नेपाली राजकीय भाषा है , उन क्षेत्रों में बंगाली भाषा को अध्यारोपित करने का आदेश जारी  किया गया तो गोरखालैंड फिर सुलग गया | दार्जिलिंग ,जलपाईगुड़ी,कूच बिहार, उतरी एवं दक्षिणी दिनाजपुर, मालदा तथा सिलीगुड़ी क्षेत्र बंगाल के तथा असम के कुछ क्षेत्र गोरखा हिंसा से बुरी तरह प्रभावित हुए है |

गोरखालैंड की अलग मांग क्यों ?
  • गोरखा समूह अपनी अलग पहचान स्थापित करने , अपनी संस्कृति, भाषा , परम्पराओं  के संरक्षण हेतु अलग राज्य की मांग कर रहा हैं।
  •  दार्जिलिंग क्षेत्र चाय उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं | चाय का अधिकांश राजस्व बंगाल सरकार द्वारा राज्य के अन्य भागों के विकास में व्यय किया जाता है, दार्जिलिंग हमेशा उपेक्षा का शिकार रहा हैं | इसलिय गोरखालैंड की अलग मांग की जा रही हैं |
  • पर्यटन विकास के लिए बंगाल सरकार दार्जिलिंग को केन्द्रित नहीं कर रही है, एसे में स्थानीय निवासियों को रोजगार के संकट का सामना करना पड़ रहा हैं |
  • दार्जिलिंग (जहां गोरखा बहुमत में है ) शिक्षा के क्षेत्र में सबसे पिछड़ा जिला है , कुपोषण , बिमारियाँ , गरीबी , बेरोजगारी तथा आधारभूत संरचना के विकास का आभाव हैं |
बंगाल सरकार की गोरखालैंड के प्रति यही उपेक्षा गोरखाओं में नैराश्य की भावना को प्रबल कर रही है और यही नैराश्य आखिरकार अलग राज्य की मांग के रूप में सामने आ रहा हैं।

क्या गोरखालैंड को अलग राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए ? 

  •  गोरखालैंड राज्य की मांग का सम्बन्ध दार्जिलिंग तथा जलपाईगुड़ी जिलों से हैं  | ध्यातव्य है की जहाँ दार्जिलिंग की मात्र 15 फीसदी जनसंख्या जो गोरखा है वही गोरखालैंड मांग के समर्थन में है और ८५ फीसदी लोग गोरखालैंड की मांग के खिलाफ है वहीँ जलपाईगुड़ी की 70 फीसदी जनसँख्या गोरखालैंड की मांग के खिलाफ है | एसे में बहुमत के खिलाफ अल्पमत को तुष्ट करने के लिए गोरखालैंड को अलग राज्य का दर्जा नही देना चहिये | सरकार को चाहिए की अल्पमत के हितों की रक्षा के लिए उनके विकास के समुचित उपाय किये जाये | अलग राज्य बनने से समस्या का समाधान नहीं होगा बल्कि समस्याएँ और बढ़ेगी |
  • अगर गोरखालैंड को अलग राज्य बनाया जाता है तो ग्रेटर कूच बिहार के कामतापुर समुदाय तथा बोडोलैंड के बोडो समुदाय भी अपनी अलग राज्य की पूर्ववर्ती मांग को और सशक्त रूप से रखेंगे | जो की राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिकूल हैं ,क्योंकि इससे प्रोत्सहित होकर भारत भर में कई नये राज्यों की मांग उठने लगेगी | अतः सरकार को चहिये की समग्र विकास करते हुए गोरखा समुदाय को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया जाए |
  • अगर गोरखालैंड को अलग राज्य बनाया जाता है तो इसकी सीमाएं कूच बिहार से अधिलोपित होगी , क्योंकि गोरखालैंड की मांग में कूच बिहार के क्षेत्र भी शामिल हैं | कूच बिहार का अंश भी वहां का नागरिक गोरखालैंड को देना नहीं चाहता | इसे में विवाद और गहरा जाएगा |
निष्कर्ष स्वरूप कह सकते है की संघ एवं राज्य सरकार को मिलकर ऐसा संतोषजनक हल निकालना चाहिए जिससे हर पक्ष संतुष्ट हो | बंगाल सरकार को गोरखाओं की संस्कृति के संरक्षण के प्रयास करने चाहिए , बंगाली भाषा को उनपे थोपना नहीं चाहिए , दार्जलिंग क्षेत्र के विकास के कार्य करवाने चाहिए , अभी तक उपेक्षा के शिकार रहे इस क्षेत्र पर आर्थिक , राजनीतिक रूप से विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए जिससे गोरखा समुदाय अपने आपको बंगाल प्रान्त का हिस्सा मानेंगे और यही इस समस्या का स्थायी समाधान होगा | अलग राज्य का गठन किसी भी दृष्टिकोण से समस्या का समाधान नहीं कर पाएगा उल्ट इसके समस्याएँ और बढ़ाएगा |



आभार 
गणपत सिंह राजपुरोहित 


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