कश्मीर समस्या और समाधान के इस आलेख के साथ में कश्मीर से सम्बंधित विभिन्न पक्षों को शामिल करूँगा। यथा -
वर्तमान कश्मीर को निम्न उपभागों में विभाजित किया जा सकता है - (मानचित्रानुसार)
A.भारत प्रशासित कश्मीर -
B. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर -
2. कश्मीर का संक्षिप्त इतिहास :-
- कश्मीर का भौगोलिक अवस्थिति एवं जनांकिकीय संगठन।
- कश्मीर का संक्षिप्त इतिहास।
- कश्मीर समस्या की पृष्ठभूमि में जिम्मेदार कारण तथा स्वतन्त्रता के बाद का घटनाक्रम।
- धारा 370 और इसके प्रावधान।
- अनुच्छेद 35A
- वर्तमान स्थिति एवं समाधान के सुझाव।
1. कश्मीर का भौगोलिक अवस्थिति एवं जनांकिकीय संगठन :-
वर्तमान कश्मीर को निम्न उपभागों में विभाजित किया जा सकता है - (मानचित्रानुसार)
A.भारत प्रशासित कश्मीर -
- 26 अक्टूबर, 1947 को महाराजा हरि सिंह द्वारा विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद भारतीय सेना द्वारा कबिलाई लड़ाकों को पीछे खदेड़ कर जितना क्षेत्र अपने नियन्त्रण में लाया, कश्मीर के वो भाग भारत प्रशासित कश्मीर का हिस्सा है। भारत के नियंत्रण में कश्मीर के निम्न क्षेत्र हैं -
- जम्मू (हिन्दू बाहुल्य क्षेत्र)
- कश्मीर घाटी (मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र)
- श्रीनगर (मुस्लिम बाहुल्य)
- लद्दाख एवं लेह क्षेत्र (बौद्ध बाहुल्य क्षेत्र)
- सियाचिन ग्लेशियर क्षेत्र - दुनिया की सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित युद्ध क्षेत्र, भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत द्वारा 13 अप्रैल, 1984 को इस पर अपना नियंत्रण स्थापित किया था| ऑपरेशन मेघदूत 1984, में भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ को यह जानकारी हासिल हुई कि पाकिस्तान अपने अभियान ऑपरेशन अबाबील के तहत सियाचीन के सल्तोरो रेंज को हथियाने की योजना बना रहा है। यह खबर मिलते ही भारतीय सेना ने इस दुर्गम इलाके में तुरंत ऑपरेशन मेघदूत की योजना बना डाली। इस सामरिक चोटी पर कब्जा जमाने के लिए पाकिस्तानी सेना के जवान पहुंचे, उसके पहले ही इस क्षेत्र में करीब 300 भारतीय जवानों की टुकड़ी को तैनात कर दिया गया।
- 1948 के भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद जिन क्षत्रों में पाकिस्तानी सेना थी वो क्षेत्र पाकिस्तान के अधीन कर दिये गए तथा जिन क्षेत्रों में भारतीय सेना थी वो भारत के अधीन मान लिए गए और मध्य में शान्तिरेखा (सीज़फायर) का निर्धारण कर दिया गया जिसे 1965 में Line of Control (LoC) अर्थात् नियंत्रण रेखा नाम दिया गया।
- अब LoC के उस पार पाकिस्तान का नियन्त्रण और इस और भारत का नियंत्रण स्थापित है। इस पाक अधिकृत कश्मीर में निम्न क्षेत्र हैं -
- आज़ाद कश्मीर - असल में इसे ही पाक अधिकृत कश्मीर माना जाता है, कहने को तो यह स्वतन्त्र है लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि पाकिस्तान प्रशासित क्षेत्र है , इसकी राजधानी मुज़फ़रबाद है।
- गिलगित बाल्टिस्तान क्षेत्र - यह क्षेत्र एक एजेंसी द्वारा शासित है और भारत एवं पाकिस्तान दोनों द्वारा लगातार अपना हक इसपर जताया जा रहा है। इसलिए इसे विवादित क्षेत्र (डिस्प्यूट एरिया) की श्रेणी में रखा है। हाल ही में पाकिस्तान द्वारा इस क्षेत्र को अपना प्रान्त घोषित करने की नापाक चाल का भारत ने कड़ा विरोध किया तथा भारत सरकार की तरफ से आधिकारिक बयान भी जारी किया कि गिलगित बाल्टिस्तान भारत का अभिन्न हिस्सा है।
- भारत चीन युद्ध के बाद से कश्मीर के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र जिसे वर्तमान में अक्साई चीन कहा जा रहा है, पर चीन ने अपना अवैध नियंत्रण स्थापित किया हुआ है तथा यहाँ चीन काराकोरम राजमार्ग की निर्माण भी करवा रहा है जिसका भारत विरोध कर चुका है।
- अक्साई चीन LaC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) द्वारा लद्दाख क्षेत्र से अलग हो रहा है।
- वर्ष 1965 के युद्ध के बाद पाकिस्तान ने चीन को शक्षगम घाटी उपहारस्वरूप दे दी जिसके चलते चीन अक्साई चीन एवं गिलगित क्षेत्र तथा सियाचिन युद्ध क्षेत्र पर निगरानी रख सकता है।
अतः प्राचीन कश्मीर क्षेत्र आज 3 देशों यथा भारत, पाकिस्तान तथा चीन द्वारा भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में तथा भिन्न-भिन्न शासन पद्धतियों से शासित हो रहा है। ऊपर दी गयी तालिका, मानचित्र एवं विवरण द्वारा अच्छे से समझा जा सकता है। उक्त भौगोलिक विवरण के बाद अब आते हैं कश्मीर के संक्षिप्त इतिहास पर।
2. कश्मीर का संक्षिप्त इतिहास :-
- कल्हण विरचित राजतरंगिणी ग्रन्थ 12वीं शताब्दी ई. तक का कश्मीर का इतिहास बताता है। प्रारंभ से कश्मीर हिन्दू राज्य रहा है। अशोक मौर्य के साम्राज्य का हिस्सा भी रहा। लगभग तीसरी शताब्दी में अशोक का शासन रहा था।
- ततपश्चात यहां बौद्ध धर्म का आगमन हुआ, जो आगे चलकर कुषाणों के अधीन समृद्ध हुआ था।
- उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य के अधीन छठी शताब्दी में एक बार फिर से हिन्दू धर्म की वापसी हुई।
- उनके बाद ललितादित्या हिन्दू शासक रहा, जिसका काल 697 ई. से 738 ई. तक था। अवन्तिवर्मन ललितादित्या का उत्तराधिकारी बना। उसने श्रीनगर के निकट अवंतिपुर बसाया। उसे ही अपनी राजधानी बनाया। जो एक समृद्ध क्षेत्र रहा। उसके खंडहर अवशेष आज भी शहर की कहानी कहते हैं।
- यहां महाभारत युग के गणपतयार और खीर भवानी मन्दिर आज भी मिलते हैं। गिलगित में पाण्डुलिपियां मिली हैं, जो प्राचीन पाली भाषा में हैं। उसमें बौद्ध लेख लिखे हैं। त्रिखा शास्त्र भी यहीं की देन है। यह कश्मीर में ही उत्पन्न हुआ। इसमें सहिष्णु दर्शन होते हैं।
- चौदहवीं शताब्दी में यहां मुस्लिम शासन आरंभ हुआ। उसी काल में फारस से से सूफी इस्लाम का भी आगमन हुआ। यहां पर ऋषि परम्परा, त्रिखा शास्त्र और सूफी इस्लाम का संगम मिलता है, जो कश्मीरियत का सार है। भारतीय लोकाचार की सांस्कृतिक प्रशाखा कट्टरवादिता नहीं है।
- सन 1589 में यहां मुग़लों का राज हुआ। यहा अकबर का शासन काल था। मुग़ल साम्राज्य के विखंडन के बाद यहां पठानों का कब्जा हुआ। यह काल यहां का काला युग कहलाता है।
- फिर 1814 में पंजाब के शासक महाराज रणजीत सिंह के हाथों पठानों की पराजय हुई तथा सिख साम्राज्य की स्थापना हुई।
- आगे चलकर डलहौजी के काल में आंग्ल-सिख युद्ध हुए जिसके परिणामस्वरूप सिख सेना दुलीप सिंह के नेतृत्व में पराजित हुई तब लाहौर सन्धि की शर्तों के अनुसार रानी जिन्दन को 1 करोड़ 50 लाख रुपये अंग्रेजों को देने थे, 75 लाख तो दे दिए गए लेकिन बाकी 75 लाख के बदले डलहौजी ने कश्मीर डोंगरा सरदार गुलाब सिंह को 75 लाख में बेच दिया।
- यहीं से डोगरा शासकों का कश्मीर पर शासन शुरू होता है। गुलाब सिंह का पौत्र हरि सिंह हुआ जिसने 1925 में कश्मीर की गद्दी सम्भाली और अंग्रेजी हुकूमत के अधीन राजकार्य प्रारम्भ किया।
- वर्ष 1947 में ब्रिटिश हुकूमत ने अपनी सर्वोच्चता वापस लेने की घोषणा कर दी, जैसे यह घोषणा की वैसे ही भारत की 562 रियासतें स्वतन्त्र हो गयी क्योंकि अब तक वो ब्रिटिश हुकूमत के अधीन थीं अब इन रियायतों के ऊपर किसी सर्वोच्च सत्ता का अधिकार नहीं रहा।
- ऐसे में माउंटबेटन ने घोषणा की कि रियासतों के पास तीन विकल्प हैं। प्रथम भारत में शामिल हो जाए, द्वितीय पाकिस्तान में शामिल हो जाए और तृतीय आज़ाद हो जाए।
- महाराज हरि सिंह ने कश्मीर को आज़ाद रखने का निर्णय लिया और यहीं से कश्मीर विवादों के जलकुंड में पड़ जाता है।
3.कश्मीर समस्या की पृष्ठभूमि में जिम्मेदार कारण तथा स्वतन्त्रता के बाद का घटनाक्रम:
1947 से वर्तमान तक का समकालीन इतिहास काफी जटिलताओं से भरा रहा है। अलग संविधान, पाकिस्तान पोषित आतंकवाद, AFSPA क़ानून, कभी मानवाधिकार हनन की घटनाएं, आतंकवाद एवं घुसपैठ, सुलग रही घाटी तथा इन सबसे लड़ते भारत के वो वीर पुत्र।
26 अक्टूबर, 1947 से 26 जनवरी, 1957 तक का कश्मीर :
- 15 अगस्त, 1947 को भारत आज़ाद हो चुका था ब्रिटिश सर्वोच्चता समाप्त हो चुकी थी ऐसे में भारत शासन अधिनियम में सभी रियासतों को तीन विकल्प दिए थे कि या तो संबंधित रियासत पाकिस्तान में शामिल हो जाए या भारत में शामिल हो जाएं या अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखें।
- स्वतंत्रता तक कश्मीर, हैदराबाद तथा जूनागढ़ रियासतों को छोड़कर बाकी सारी रियासतों ने भारत में शामिल होने का निर्णय ले लिया था।
- आगे चलकर जूनागढ़ एवं हैदराबाद रियासतों को भी सैन्य कार्यवाही द्वारा भारत का हिस्सा बन लिया गया था। लेकिन कश्मीर अभी भी निर्णय नहीं ले पाया था कि करना क्या है ? इस कहानी को प्रारम्भ करूँ उससे पहले में इस कहानी के प्रमुख किरदारों और उनकी कश्मीर को लेकर विचारधारा और पक्ष के बारे में बताना चाहूंगा। ये निम्न थे -
महाराजा हरि सिंह :-
हरि सिंह गुलाब सिंह के पौत्र थे जिन्होंने 1925 में कश्मीर की गद्दी संभाली थी और राजतनरात्मक शासन पद्धति से कश्मीर में शासन व्यवस्था संचालित कर रहे थे। वर्ष 1947 में जब रियासती विभाग ने कश्मीर से पूछा कि वह कौन सा विकल्प चुनेंगे तब महाराजा हरि सिंह का जवाब था कि वह कश्मीर को आजाद राष्ट्र के रूप में देख रहे हैं तथा भारत एवं पाकिस्तान दोनों के साथ यथास्थिति बनाये रखना चाह रहे हैं। इस हेतु उन्होंने पाकिस्तान से स्टैंड स्टील एग्रीमेंट भी किया और भारत से वार्ता भी की।
शेख अब्दुल्ला :-
वर्ष 1930 में इन्होंने नेशनल कांफ्रेंस पार्टी का गठन किया। इस समय शेख अब्दुल्ला एक छात्र नेता के रूप में उभरे थे। नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी का मुख्य उद्देश्य हरि सिंह के तानाशाह शासन का विरोध करना तथा उसे जड़ से उखाड़ फेंकना था। वर्ष 1947 तक शेख अब्दुल्ला का प्रभाव जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में बहुत बढ़ गया था साथ ही साथ वह जवाहरलाल नेहरू के घनिष्ठ मित्र भी थे।
उनका पक्ष कश्मीर को भारत का अंग बनाने का था उनका कभी भी उद्देश्य कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बनाने का नहीं रहा। शेख अब्दुल्ला चाहते थे कि कश्मीर भारत का भाग रहे लेकिन कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाए और यही बात भारतीय अनुच्छेद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 का आधार बनी।
जवाहरलाल नेहरू :-
नेहरू जी चाहते थे कि कश्मीर किस देश का हिस्सा बनेगा इस बात को तय करने का अधिकार केवल कश्मीर की जनता को होना चाहिए। अतः कश्मीर में सर्वसम्मति से जनमत संग्रह करवाया जाएगा जिसके परिणाम स्वरुप यह निर्णय लिया जाएगा कि कश्मीर की आवाम भारत के साथ होना चाहती है या पाकिस्तान के साथ, और इस बात को नेहरु जी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में उछाल कर कश्मीर समस्या को भारत एवं पाकिस्तान समस्या का रूप दे दिया जहां अमेरिका व ब्रिटेन ने अपने हितों के अनुसार इस मुद्दे का प्रयोग किया।
लॉर्ड माउंटबेटन :-
माउंटबेटन उस समय भारत एवं पाकिस्तान दोनों की सेना के सैन्य प्रमुख था। बिना इसकी इजाजत के सेना कोई भी अभियान नहीं कर सकती थी। यह चाहते थे कि जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा बने, लेकिन जनमत संग्रह के बाद।
मोहम्मद अली जिन्नाह :-
पाकिस्तान के राष्ट्रपति जो जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने का भरसक प्रयास कर रहे थे उन्होंने हर वह कोशिश की जिस से कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा बने।
सरदार वल्लभ भाई पटेल :-
रियासती विभाग के प्रमुख होने के नाते भारत का एकीकरण उनका मुख्य दायित्व था पटेल चाहते थे कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बने। पटेल न तो जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्ज़ा देने के पक्ष में थे और ना ही जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह करवाने के पक्ष में थे। पटेल का मानना था कि कबीलाई लड़ाकों को जम्मू-कश्मीर से खदेड़ कर भारत सरकार को अपनी शासन सत्ता स्थापित कर लेनी चाहिए। लेकिन नेहरू जी पटेल की इस बात से सहमत न थे, इसलिए पटेल के सुझाव दरकिनार कर दिए गए।
पूरी कश्मीर की कहानी में यही 6 किरदार थे अंतत जवाहर लाल नेहरू, माउंटबेटन तथा शेख अब्दुल्ला की विचारधारा की जीत हुई और इसी जीत में कश्मीर हार गया।
- कश्मीर के उत्तर पश्चिम क्षेत्र में अवस्थित नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रान्त क्षेत्र में कई कबीले रहते थे इन कबीलों की अपनी सेनाएं थीं।
- जैसे ही 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ, इस समय तक पाकिस्तान भी आजाद हो चुका था। लेकिन कश्मीर के महाराजा भारत के साथ हुए थे ना पाकिस्तान के साथ ऐसे में कबीलाई सेना ने कश्मीर पर आक्रमण करने की योजना बनाई इन लड़ाकों को पाकिस्तान ने सैन्य मदद आर्थिक मदद दी।
- इस प्रकार कबीलाई सेना सितंबर ,1947 तक श्रीनगर क्षेत्र को घेर चुकी थी। महाराजा हरि सिंह के पास इतनी सशक्त सेना नहीं थी कि वह कबिलाई सेना को चुनौती दे सके।
- ऐसी स्थिति में महाराजा के पास दो ही विकल्प थे या तो वह कबिलाई सेना के सामने आत्मसमर्पण करके श्रीनगर हमेशा के लिए उनको दे दे या फिर भारत सरकार से सैन्य सहायता मांगे।
- महाराजा ने इस स्थिति में दूसरे विकल्प का चयन किया तथा भारत सरकार से सैन्य सहायता मांगी लेकिन मुख्य सेनापति होने के नाते लॉर्ड माउंटबेटन ने स्पष्ट मना कर दिया कि भारत की सेना कश्मीर तब तक नहीं जाएगी जब तक कश्मीर भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर नहीं करेगा।
- क्योंकि जब तक विलय पत्र पर हस्ताक्षर नहीं होगा तब तक कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं होगा और ऐसी स्थिति में भारत किसी दूसरे क्षेत्र पर अपनी सैन्य कार्रवाई नहीं करेगा।
- मजबूर होकर महाराजा हरि सिंह ने जम्मू स्थित अमर पैलेस में 26 अक्टूबर, 1947 को भारत के साथ शामिल होने के लिए विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए।
- हस्ताक्षर के दौरान शेख अब्दुल्ला ने भी महाराजा हरि सिंह का समर्थन किया। इस समर्थन के पीछे यह कारण बताया जा रहा है की शेख अब्दुल्ला की वह मांग जिसमें उसने कहा था कि जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाएगा को जवाहरलाल नेहरू ने स्वीकार कर लिया था। इसी स्वीकारोक्ति के उपरांत शेख अब्दुल्ला भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए सहमत हुए।
- हस्ताक्षर के उपरांत भारतीय सेना वायुयान के जरिए श्रीनगर पहुंची जिसका नेतृत्व दीवान रंजीत राय ने किया भारतीय सेना ने कबीला की सेना तथा पाकिस्तान समर्थित सेना को श्रीनगर से पीछे खदेड़ दिया।
- इन स्थितियों को देखते हुए मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तानी सेना को आदेश दिया कि वह श्रीनगर पर आक्रमण कर लें लेकिन मुख्य सेनापति होने के नाते माउंटबेटन ने पाकिस्तानी सेना को ऐसा करने के लिए आदेश नहीं दिया।
- ऐसी स्थिति में जिन्ना ने जवाहरलाल नेहरू एवं लॉर्ड माउंटबेटन को लाहौर वार्ता का आमंत्रण दिया है। सरदार वल्लभभाई पटेल इस वार्ता के पूर्ण रूप से खिलाफ थे इसके बावजूद भी लॉर्ड माउंटबेटन लाहौर गए और उन्होंने जिन्ना से वार्ता की।
- वार्ता के उपरांत यह निर्णय लिया की कश्मीर की स्थिति जनमत संग्रह द्वारा तय की जाएगी। दूसरे ही दिन जनवरी, 1948 में जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कह दिया कि हम संयुक्त राष्ट्र संघ के सानिध्य में कश्मीर की आवाम से जनमत संग्रह करवाएंगे। परिणाम स्वरूप जो निर्णय आएगा वह हमे स्वीकार्य होगा।
- इस बात पर अमल करते हुए जवाहरलाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव को प्रस्ताव संख्या 47 कहा गया।
- इस प्रस्ताव में तीन बातें कही गई थी पहले पाकिस्तान सरकार को कश्मीर से कबिलाई सेना को हटाना, भारत को इतनी न्यूनतम सेना रखना कि वहां की कानून व्यवस्था बनी रहे तथा और ततपश्चात जनमत संग्रह करवाना।
- प्रस्ताव संख्या 47 पूर्ण रूप से असफल रहा क्योंकि न पाकिस्तान ने कबीलाई सेना हटाई और ना ही भारत ने अपनी सेना हटाई। ऐसी स्थिति में आज दिन तक जनमत संग्रह नहीं हो पाया। समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है। वहीं भारत की सेना डेरा डाले हुए और वहीं पाकिस्तान सेना डेरा डाले हुए हैं।
4.धारा 370 और इसके प्रावधान:
- 1948 में शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री बना दिया गया। उसके बाद नेहरू एवं शेख अब्दुल्ला के मध्य पूर्वगामी समझौते के अनुरूप जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देना दिलाने की प्रक्रिया शुरू होती है।
- इस प्रक्रिया के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई कि भारत के संविधान के भाग 21 के अंतर्गत अनुच्छेद 370 जोड़ा जाएगा जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य के लिए विशेष उपबंध होंगे जो कि पूर्ण रूप से अस्थाई होंगे।
- अनुच्छेद 370 के भीमराव अंबेडकर पूर्णतया ख़िलाफ़ थे उनका मानना था कि इस प्रकार से भारत की एकता एवम अखंडता को खतरा हो सकता है।
- अंबेडकर के अलावा वल्लभभाई पटेल हसरत मोहनी भी अनुच्छेद 370 के खिलाफ थे। लेकिन शेख अब्दुल्ला एवं जवाहरलाल नेहरू की ज़िद के चलते भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष शक्तियां दे दी गई।
- धारा 370 को ड्राफ्ट करने का कार्य GS आयंगर महोदय ने किया । इसकी प्रमुख प्रावधान इस प्रकार थे -
* धारा 370 के अनुसार जम्मू-कश्मीर राज्य का अलग संविधान होगा।
* संसद का कोई भी कानून जम्मू-कश्मीर में तभी लागू होगा जब जम्मू-कश्मीर विधानसभा उस कानून को लागू करने की अनुमति देगी।
* कश्मीर का अलग झंडा होगा।
* संविधान के अनुच्छेद 238 के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होंगे
* अनुच्छेद 1 के उपबंध तथा अनुच्छेद 370 के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू होंगे इसके अलावा एक भी अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होगा
- 17 नवंबर, 1952 को धारा 370 लागू हो गई यह धारा लागू होने के बाद में जम्मू-कश्मीर राज्य का संविधान बनाया गया जिसे 26 जनवरी, 1957 को जम्मू-कश्मीर विधानसभा द्वारा लागू कर दिया गया जो कि आज भी प्रवर्तन में है।
- भारतीय संसद केवल रक्षा, संचार एवं विदेश सम्बन्धित मामले अपने पास रख सकता है बाकी सारे कानून बनाने की शक्ति जम्मू कश्मीर विधान सभा के पास है।
- यहाँ तक कि धारा 370 समाप्त करने का अधिकार का प्रयोग राष्ट्रपति तभी कर सकता है जब कश्मीर विधानसभा उसकी सहमति देगी। इसको हटाने का प्रावधान 370(3) में हैं।अनुच्छेद 370(3) कहता हैं कि "राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा कि यह अनुच्छेद प्रवर्तन में नहीं रहेगा या ऐसे अपवादों और उपांतरणों सहित ही और ऐसी तारीख से, प्रवर्तन में रहेगा, जो वह विनिर्दिष्ट करे। परंतु राष्ट्रपति द्वारा ऐसी अधिसूचना निकाले जाने से पहले जम्मू कश्मीर राज्य की संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक होगी।"
- सामान्य शब्दों में कहे तो संविधान का अनुच्छेद 370(3) व्यवस्था करता है कि राष्ट्रपति संघीय केबिनेट की लिखित सिफारिश के बाद एक लोक अधिसूचना द्वारा अनुच्छेद 370 को हटा सकता है लेकिन इस अधिसूचना को निकालने से पहले राष्ट्रपति को जम्मू कश्मीर संविधान सभा की अनुमति आवश्यक होगी।
- चूंकि वर्ष 1957 में जम्मू कश्मीर संविधान सभा स्थायी रूप से समाप्त हो गयी हैं। ऐसे में राष्ट्रपति को ऐसी किसी लोक अधिसूचना को निकालने से पहले किसकी अनुमति लेनी होगी ? क्या जम्मू कश्मीर विधानसभा को संविधान सभा के समान दर्ज़ा हासिल है ? इस सम्बंध में क्या प्रावधान है? ऐसे में इन सारे सवालों के जवाब माननीय सर्वोच्च न्यायालय को तय करने हैं |
5.अनुच्छेद 35 A
- वर्ष 1954 में प्रधानमंत्रीें जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने एक आदेश द्वारा संविधान का अनुच्छेद 35(A) लाया गया।
- इसका संज्ञान लेते हुए हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह पूरा मामला 3 न्यायाधीशों की बैंच को सुपुर्द करने का निर्णय लिया हैं।उम्मीद करते है कि यह अनुच्छेद असंवैधानिक घोषित हो और आदेश भी रद्द हो।
- यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर सरकार को यह शक्ति देता है कि वो ऐसा कोई भी कानून बना सकती है जिसके माध्यम से जम्मू कश्मीर के बाहर के नागरिक न जम्मू कश्मीर में कोई सम्पति ख़रीद सकते,न रोजगार की मांग कर सकते ,न स्थायी रूप से रह सकते। इस प्रकार यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर के नागरिकों को विशेष सुविधाएं प्रदान करता हैं।
- हाल ही में दिल्ली स्थित एक गैर सरकारी संगठन(NGO) ने अनुच्छेद 35(A) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका(PIL) माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की। याचिकाकर्ता ने बताया कि यह अनुच्छेद 'हम भारत के नागरिक'( We the citizen) की भावना के खिलाफ है साथ ही साथ अनुच्छेद 14,19 और 21 का भी उल्लंघन करता हैं। अतः Presidential Order ,1954 को रद्द करते हुए, अनुच्छेद 35(A) को असंवैधानिक घोषित किया जाए। ऐसी याचना की है याचिकाकर्ता ने।
- यहाँ यह बताना जरूरी हो जाता हैं की अनु.35(A) को संविधान के मुख्य भाग में शामिल न करके परिशिष्ट (अपेंडिक्स) 2 में रखा गया है, अनु. 35(a) (small a) का उल्लेख मूल संविधान में है जिसका जम्मू-कश्मीर से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है|
6.वर्तमान स्थिति एवं समाधान के सुझाव:
समाधान के बिन्दुओं पर जाने से पहले बताना चाहूंगा कि युद्ध किसी समस्या का दीर्घकालिक समाधान नहीं हो सकता। उदाहरण अफगानिस्तान का ले लीजिए, लगभग सम्पूर्ण मध्य एशिया का युद्ध ने बजाय शांति के, अस्थिरता ही उत्पन्न की है, बजाय समस्या के समाधान के ,समस्या को और जटिल ही बनाया है, अतः युद्ध किसी समस्या का समाधान कभी नहीं हो सकता।
हाल की कश्मीर की निर्मम घटनाओं के बाद उफनते राष्ट्रवाद की धार में राष्ट्रव्यापी मांग हो गयी कि युद्ध ही एकमात्र विकल्प है कश्मीर समस्या का, तो मैं उन सभी को बताना चाहूंगा कि युद्ध के वीभत्स परिणाम की कल्पना करो रूह तक कांप जाएगी। अनगिनत माताओं की कोख सूनी हो जाएगी, अनगिनत महिलाओं की मांग का सिंदूर चला जाएगा, अनगिनत बहनों को राखी के दिन रोना होगा, हज़ारों बच्चे अपने बाप को मिलने के लिए सिहर जाएंगे, भाइयों का कन्धा टूट जाएगा।
अतः युद्ध एकमात्र समाधान नहीं है युद्ध अंतिम विकल्प ज़रूर हो सकता है मगर अंतिम समाधान कभी नहीं हो सकता।
अब आते हैं मूल मुद्दे पर कि अगर युद्ध का विकल्प उचित नहीं है तो कौनसे विकल्प सरकार को अपनाने चाहिए ताकि गहरी बीमारी के रूप में खड़ी कश्मीर समस्या का समाधान हो सके ? इस हेतु में कहना चाहूंगा कश्मीर समस्या किसी एक सूत्री नीति से हल नहीं हो सकती, इस हेतु सरकार हो बहुसूत्री रणनीति अपनानी होगी। जिसके प्रमुख सूत्र यह हो सकते हैं -
01. जीरो टॉलरेंस की नीति :
- सरकार को चाहिए कि वो कट्टरपंथी, अलगाववादी, घुसपैठ, आतंकवाद, पत्थरबाज़ तथा राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के जवाब के रूप में जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाए।
- इसके अंतर्गत कश्मीर में सेवारत सुरक्षाबलों, सेना, पुलिस तथा सभी प्रकार के सीमा प्रहरियों को फ्री हैंड किया जाए। जिससे इस उग्र और राष्ट्रविरोधी तत्वों पर लगाम लगाई जा सकती है।
- इसका परिणाम यह होगा कि कश्मीर की जनता का विश्वास सरकार पर पुनःस्थापित होगा और अगर कश्मीर की जनता सरकार पर विश्वास करने लग जाए तो आधी समस्या का समाधान यहीं पर हो जाता है।
- वर्तमान में सरकार कहने को तो ज़ीरो टॉलरेंस पर है लेकिन वास्तविकता यह है कि सरकार उपर्युक्त तत्वों के आगे काफी उदार बर्ताव कर रही है जिससे कश्मीर की जनता का विश्वास सरकार की बजाय राष्ट्रविरोधी तत्वों के साथ स्थापित हो रहा है।
- हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा कृष्णा घाटी में आर्मी को फ्री हैंड किया जाना इस दिशा की और पहला कदम माना जा सकता है अंतिम नहीं। पूर्व की सरकार द्वारा अफ्सपा कानून ने भी सेना को सशक्त किया है, लेकिन इसके दुरुपयोग का भी लगातार विरोध हो रहा है ऐसे में सरकार को चाहिए कि कुछ उपबन्ध करे कि सेना बल अपने अधिकारों का दुरुपयोग न करे।
02. वार्तालाप :
- वर्तमान हालात यह है कि संघ सरकार का कश्मीर राज्य सरकार से तथा कश्मीर की अवाम से कम से कम प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित हो रहा है तथा कश्मीर की सरकार अलगाववादियों से फंसी है और जनता के साथ न्यूनतम सम्पर्क बनाये हुए है, यही असल समस्या है।
- अतः संघ व राज्य सरकार को चाहिए कि विभिन्न ऑनलाइन पोर्टल, प्रत्यक्ष संवाद, संगोष्ठी, सम्मेलन तथा विभिन्न माध्यमों के सहारे कश्मीर की जनता से प्रत्यक्ष संवाद स्थापित करे, जिससे सरकार को जनता की समस्याओं से अवगत होने का मौका मिलेगा तथा जनता को समस्याएं अभिव्यक्त करने का अवसर प्राप्त होगा।
- उक्त प्रयास से जनता की समस्याओं का ज़मीनी स्तर पर समाधान हो सकेगा। इसी समाधान में कश्मीरी अवाम का विश्वास छिपा है। यही विश्वास जनता को सरकार के साथ लाएगा और यही जनता और सरकार का साथ समस्या का दूसरा समाधान होगा।
03. विकास :
- अभी की बात की जाए तो विकास के दृष्टिकोण से कश्मीर की हालत बड़ी नाज़ुक है। ऐसे में युवा वर्ग अलगाववादी तत्वों की और लगातार आकर्षित हो रहा है, चाहे पत्थरबाज़ हो या विश्वविद्यालय छात्रों का विरोध इसी बात को साबित करता है कि विकास कार्य क्षीण अवस्था मे है।
- अतः सरकार को कश्मीर की आधारभूत संरचना के विकास, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं का विकास, कनेक्टिविटी को बढ़ावा, आर्थिक विकास तथा पर्यटन विकास पे लगातार प्रयास करना चाहिए।
- जिससे न केवल कश्मीर क्षेत्र विकसित हो पाएगा बल्कि युवाओं को रोज़गार भी प्राप्त होगा साथ ही साथ सरकार पर विश्वास भी कायम होगा, परिणामस्वरूप अलगाववादी तत्व कमजोर होंगे और सरकार मज़बूत। यही मज़बूती कश्मीर समस्या का समाधान हो सकती है।
04. कूटनीति :
- चूंकि कश्मीर समस्या के पीछे सबसे बड़ा कारण पाकिस्तान पोषित आतंकवाद है, इसलिये भारत सरकार को चाहिए कि कूटनीति के स्तर पर पाकिस्तान को पराजित किया जाए जिससे कश्मीर समस्या का समाधान और आसान हो जाएगा।
- इस हेतु सरकार द्वारा निम्न प्रयास किये जा सकते हैं - पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करवाने हेतु वैश्विक स्तर पर प्रयास किया जाए, अगर भारत यह करने में सक्षम होता है तो पाकिस्तान न केवल वैश्विकस्तर पर अलग थलग पड़ जाएगा बल्कि वैश्विक वित्तीय मदद भी रुक जाएगी साथ ही साथ कश्मीर मुद्दे को विश्व स्तर पर उछालने में पाकिस्तान नाकामयाब रहेगा।
- वैश्विक स्तर पर यह बात साबित करने के प्रयास करना कि असल में कश्मीर समस्या पाकिस्तान द्वारा पोषित समस्या है। उक्त प्रयासों से पाकिस्तान का पक्ष कमजोर हो जाएगा तथा चीन भी पाकिस्तान की चाहकर भी मदद नहीं कर पायेगा।
05. तकनीकी प्रयोग :
- कश्मीर की सीमा रेखा पर लेज़र कवरिंग, फैंसिंग, अल्ट्रा तकनीकी युक्त उपकरण लगाने चाहिए जिससे न केवल सैन्य निगरानी आसान और प्रभावी होगी बल्कि घुसपैठ पर नियंत्रण भी हो पाएगा साथ ही साथ सैन्य कैज़ुलटी कम होगी।
- कश्मीर में कार्यरत जवानों को अत्याधुनिक हथियार, PVC वर्दियां, उच्च गुणवत्ता युक्त खाद्यान्न, अत्याधुनिक वाहन तथा विभिन्न प्रकार की ज़रूरतों को पूर्ण करने के लिए सुविधाओं को उपलब्ध करवाया जाना चाहिये।
- उक्त तकनीकी के प्रयोग से न केवल सैन्य मनोबल बढ़ेगा बल्कि सैन्य युद्ध जैसी स्थिति से निपटने में आसानी से सक्षम होगी।
निष्कर्षतः सरकार उक्त सभी रणनीतियों को समग्र रूप से तथा प्रभावी रूप से धरातल पर लागू करने का प्रयास करे तो, एक समय बाद कश्मीर की जनता का झुकाव सरकार की तरफ़ होगा जिससे किसी राष्ट्रीय दल की स्पष्ट बहुमत की सरकार कश्मीर में निश्चित तौर पर बनेगी। तभी सम्भव होगा कि भारतीय संविधान का अस्थायी प्रावधान अनुच्छेद 370 का हटाना। इस प्रावधान के हटते ही कश्मीर समस्या हद तक समाप्त हो जाएगी। हालिया सरकार द्वारा हुर्रियत नेताओं की मनी लौन्डरिंग मामले में जाँच NIA को सौंपना तथा NIA द्वारा की जा रही लगातार गिरफ्तारियां कहीं न कहीं अशांत तत्वों और पत्थरबाजों के हौसले पस्त कर रहा हैं| साथ साथ ओपरेसन क्लीन घटी के अंतर्गत सेना को फ्री हैण्ड किया जाना आतंकवाद की जड़े कमजोर करने के लिए सशक्त कदम साबित हो रहा है , लेकिन इसके बावजूद भी कश्मीर के मामले में अभी भी सरकार को बहुत कुछ करना शेष हैं |
मेरे द्वारा बताए गए सुझाव नाकाफी भी हो सकते हैं, क्योंकि कोई भी इंसान समग्र नहीं सोच सकता। अतः आपके ज़हन में भी कोई समाधान हो तो कमेंट बॉक्स में ज़रूर साझा करें।
- वर्ष 1954 में प्रधानमंत्रीें जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने एक आदेश द्वारा संविधान का अनुच्छेद 35(A) लाया गया।
- इसका संज्ञान लेते हुए हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह पूरा मामला 3 न्यायाधीशों की बैंच को सुपुर्द करने का निर्णय लिया हैं।उम्मीद करते है कि यह अनुच्छेद असंवैधानिक घोषित हो और आदेश भी रद्द हो।
- यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर सरकार को यह शक्ति देता है कि वो ऐसा कोई भी कानून बना सकती है जिसके माध्यम से जम्मू कश्मीर के बाहर के नागरिक न जम्मू कश्मीर में कोई सम्पति ख़रीद सकते,न रोजगार की मांग कर सकते ,न स्थायी रूप से रह सकते। इस प्रकार यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर के नागरिकों को विशेष सुविधाएं प्रदान करता हैं।
- हाल ही में दिल्ली स्थित एक गैर सरकारी संगठन(NGO) ने अनुच्छेद 35(A) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका(PIL) माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की। याचिकाकर्ता ने बताया कि यह अनुच्छेद 'हम भारत के नागरिक'( We the citizen) की भावना के खिलाफ है साथ ही साथ अनुच्छेद 14,19 और 21 का भी उल्लंघन करता हैं। अतः Presidential Order ,1954 को रद्द करते हुए, अनुच्छेद 35(A) को असंवैधानिक घोषित किया जाए। ऐसी याचना की है याचिकाकर्ता ने।
- यहाँ यह बताना जरूरी हो जाता हैं की अनु.35(A) को संविधान के मुख्य भाग में शामिल न करके परिशिष्ट (अपेंडिक्स) 2 में रखा गया है, अनु. 35(a) (small a) का उल्लेख मूल संविधान में है जिसका जम्मू-कश्मीर से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है|
6.वर्तमान स्थिति एवं समाधान के सुझाव:
समाधान के बिन्दुओं पर जाने से पहले बताना चाहूंगा कि युद्ध किसी समस्या का दीर्घकालिक समाधान नहीं हो सकता। उदाहरण अफगानिस्तान का ले लीजिए, लगभग सम्पूर्ण मध्य एशिया का युद्ध ने बजाय शांति के, अस्थिरता ही उत्पन्न की है, बजाय समस्या के समाधान के ,समस्या को और जटिल ही बनाया है, अतः युद्ध किसी समस्या का समाधान कभी नहीं हो सकता।
हाल की कश्मीर की निर्मम घटनाओं के बाद उफनते राष्ट्रवाद की धार में राष्ट्रव्यापी मांग हो गयी कि युद्ध ही एकमात्र विकल्प है कश्मीर समस्या का, तो मैं उन सभी को बताना चाहूंगा कि युद्ध के वीभत्स परिणाम की कल्पना करो रूह तक कांप जाएगी। अनगिनत माताओं की कोख सूनी हो जाएगी, अनगिनत महिलाओं की मांग का सिंदूर चला जाएगा, अनगिनत बहनों को राखी के दिन रोना होगा, हज़ारों बच्चे अपने बाप को मिलने के लिए सिहर जाएंगे, भाइयों का कन्धा टूट जाएगा।
अतः युद्ध एकमात्र समाधान नहीं है युद्ध अंतिम विकल्प ज़रूर हो सकता है मगर अंतिम समाधान कभी नहीं हो सकता।
अब आते हैं मूल मुद्दे पर कि अगर युद्ध का विकल्प उचित नहीं है तो कौनसे विकल्प सरकार को अपनाने चाहिए ताकि गहरी बीमारी के रूप में खड़ी कश्मीर समस्या का समाधान हो सके ? इस हेतु में कहना चाहूंगा कश्मीर समस्या किसी एक सूत्री नीति से हल नहीं हो सकती, इस हेतु सरकार हो बहुसूत्री रणनीति अपनानी होगी। जिसके प्रमुख सूत्र यह हो सकते हैं -
01. जीरो टॉलरेंस की नीति :
- सरकार को चाहिए कि वो कट्टरपंथी, अलगाववादी, घुसपैठ, आतंकवाद, पत्थरबाज़ तथा राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के जवाब के रूप में जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाए।
- इसके अंतर्गत कश्मीर में सेवारत सुरक्षाबलों, सेना, पुलिस तथा सभी प्रकार के सीमा प्रहरियों को फ्री हैंड किया जाए। जिससे इस उग्र और राष्ट्रविरोधी तत्वों पर लगाम लगाई जा सकती है।
- इसका परिणाम यह होगा कि कश्मीर की जनता का विश्वास सरकार पर पुनःस्थापित होगा और अगर कश्मीर की जनता सरकार पर विश्वास करने लग जाए तो आधी समस्या का समाधान यहीं पर हो जाता है।
- वर्तमान में सरकार कहने को तो ज़ीरो टॉलरेंस पर है लेकिन वास्तविकता यह है कि सरकार उपर्युक्त तत्वों के आगे काफी उदार बर्ताव कर रही है जिससे कश्मीर की जनता का विश्वास सरकार की बजाय राष्ट्रविरोधी तत्वों के साथ स्थापित हो रहा है।
- हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा कृष्णा घाटी में आर्मी को फ्री हैंड किया जाना इस दिशा की और पहला कदम माना जा सकता है अंतिम नहीं। पूर्व की सरकार द्वारा अफ्सपा कानून ने भी सेना को सशक्त किया है, लेकिन इसके दुरुपयोग का भी लगातार विरोध हो रहा है ऐसे में सरकार को चाहिए कि कुछ उपबन्ध करे कि सेना बल अपने अधिकारों का दुरुपयोग न करे।
02. वार्तालाप :
- वर्तमान हालात यह है कि संघ सरकार का कश्मीर राज्य सरकार से तथा कश्मीर की अवाम से कम से कम प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित हो रहा है तथा कश्मीर की सरकार अलगाववादियों से फंसी है और जनता के साथ न्यूनतम सम्पर्क बनाये हुए है, यही असल समस्या है।
- अतः संघ व राज्य सरकार को चाहिए कि विभिन्न ऑनलाइन पोर्टल, प्रत्यक्ष संवाद, संगोष्ठी, सम्मेलन तथा विभिन्न माध्यमों के सहारे कश्मीर की जनता से प्रत्यक्ष संवाद स्थापित करे, जिससे सरकार को जनता की समस्याओं से अवगत होने का मौका मिलेगा तथा जनता को समस्याएं अभिव्यक्त करने का अवसर प्राप्त होगा।
- उक्त प्रयास से जनता की समस्याओं का ज़मीनी स्तर पर समाधान हो सकेगा। इसी समाधान में कश्मीरी अवाम का विश्वास छिपा है। यही विश्वास जनता को सरकार के साथ लाएगा और यही जनता और सरकार का साथ समस्या का दूसरा समाधान होगा।
03. विकास :
- अभी की बात की जाए तो विकास के दृष्टिकोण से कश्मीर की हालत बड़ी नाज़ुक है। ऐसे में युवा वर्ग अलगाववादी तत्वों की और लगातार आकर्षित हो रहा है, चाहे पत्थरबाज़ हो या विश्वविद्यालय छात्रों का विरोध इसी बात को साबित करता है कि विकास कार्य क्षीण अवस्था मे है।
- अतः सरकार को कश्मीर की आधारभूत संरचना के विकास, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं का विकास, कनेक्टिविटी को बढ़ावा, आर्थिक विकास तथा पर्यटन विकास पे लगातार प्रयास करना चाहिए।
- जिससे न केवल कश्मीर क्षेत्र विकसित हो पाएगा बल्कि युवाओं को रोज़गार भी प्राप्त होगा साथ ही साथ सरकार पर विश्वास भी कायम होगा, परिणामस्वरूप अलगाववादी तत्व कमजोर होंगे और सरकार मज़बूत। यही मज़बूती कश्मीर समस्या का समाधान हो सकती है।
04. कूटनीति :
- चूंकि कश्मीर समस्या के पीछे सबसे बड़ा कारण पाकिस्तान पोषित आतंकवाद है, इसलिये भारत सरकार को चाहिए कि कूटनीति के स्तर पर पाकिस्तान को पराजित किया जाए जिससे कश्मीर समस्या का समाधान और आसान हो जाएगा।
- इस हेतु सरकार द्वारा निम्न प्रयास किये जा सकते हैं - पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करवाने हेतु वैश्विक स्तर पर प्रयास किया जाए, अगर भारत यह करने में सक्षम होता है तो पाकिस्तान न केवल वैश्विकस्तर पर अलग थलग पड़ जाएगा बल्कि वैश्विक वित्तीय मदद भी रुक जाएगी साथ ही साथ कश्मीर मुद्दे को विश्व स्तर पर उछालने में पाकिस्तान नाकामयाब रहेगा।
- वैश्विक स्तर पर यह बात साबित करने के प्रयास करना कि असल में कश्मीर समस्या पाकिस्तान द्वारा पोषित समस्या है। उक्त प्रयासों से पाकिस्तान का पक्ष कमजोर हो जाएगा तथा चीन भी पाकिस्तान की चाहकर भी मदद नहीं कर पायेगा।
05. तकनीकी प्रयोग :
- कश्मीर की सीमा रेखा पर लेज़र कवरिंग, फैंसिंग, अल्ट्रा तकनीकी युक्त उपकरण लगाने चाहिए जिससे न केवल सैन्य निगरानी आसान और प्रभावी होगी बल्कि घुसपैठ पर नियंत्रण भी हो पाएगा साथ ही साथ सैन्य कैज़ुलटी कम होगी।
- कश्मीर में कार्यरत जवानों को अत्याधुनिक हथियार, PVC वर्दियां, उच्च गुणवत्ता युक्त खाद्यान्न, अत्याधुनिक वाहन तथा विभिन्न प्रकार की ज़रूरतों को पूर्ण करने के लिए सुविधाओं को उपलब्ध करवाया जाना चाहिये।
- उक्त तकनीकी के प्रयोग से न केवल सैन्य मनोबल बढ़ेगा बल्कि सैन्य युद्ध जैसी स्थिति से निपटने में आसानी से सक्षम होगी।
निष्कर्षतः सरकार उक्त सभी रणनीतियों को समग्र रूप से तथा प्रभावी रूप से धरातल पर लागू करने का प्रयास करे तो, एक समय बाद कश्मीर की जनता का झुकाव सरकार की तरफ़ होगा जिससे किसी राष्ट्रीय दल की स्पष्ट बहुमत की सरकार कश्मीर में निश्चित तौर पर बनेगी। तभी सम्भव होगा कि भारतीय संविधान का अस्थायी प्रावधान अनुच्छेद 370 का हटाना। इस प्रावधान के हटते ही कश्मीर समस्या हद तक समाप्त हो जाएगी। हालिया सरकार द्वारा हुर्रियत नेताओं की मनी लौन्डरिंग मामले में जाँच NIA को सौंपना तथा NIA द्वारा की जा रही लगातार गिरफ्तारियां कहीं न कहीं अशांत तत्वों और पत्थरबाजों के हौसले पस्त कर रहा हैं| साथ साथ ओपरेसन क्लीन घटी के अंतर्गत सेना को फ्री हैण्ड किया जाना आतंकवाद की जड़े कमजोर करने के लिए सशक्त कदम साबित हो रहा है , लेकिन इसके बावजूद भी कश्मीर के मामले में अभी भी सरकार को बहुत कुछ करना शेष हैं |
मेरे द्वारा बताए गए सुझाव नाकाफी भी हो सकते हैं, क्योंकि कोई भी इंसान समग्र नहीं सोच सकता। अतः आपके ज़हन में भी कोई समाधान हो तो कमेंट बॉक्स में ज़रूर साझा करें।
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