वित्त विधेयक विवाद-2017
यह विवाद बताने से पूर्व मैं (Ganpat Singh)आपको वित्त विधेयक के संबंध में सामान्य जानकारी से अवगत करवाना चाहूंगा साधारणतः वित्त विधेयक , उस विधेयक को कहते हैं जो वित्तीय मामलों जैसे राजस्व या व्यय से संबंधित होते है। इसमें आगामी वित्तीय वर्ष में किसी नए प्रकार के कर लगाने या कर में संशोधन आदि से संबंधित विषय शामिल होते हैं ।
इन्हें पुनः तीन प्रकार से उप विभाजित किया जाता है -
★धन विधेयक-( इसकी परिभाषा अनुच्छेद 110)
★वित्त विधेयक(1)- अनुच्छेद 117 (1)
★वित्त विधेयक (2)-अनुच्छेद 117( 3 )।
इन्हें पुनः तीन प्रकार से उप विभाजित किया जाता है -
★धन विधेयक-( इसकी परिभाषा अनुच्छेद 110)
★वित्त विधेयक(1)- अनुच्छेद 117 (1)
★वित्त विधेयक (2)-अनुच्छेद 117( 3 )।
यह साधारण विधेयक से इस प्रकार से भिन्न होता है कि साधारण विधेयक के विपरीत धन विधेयक के मामले में राज्यसभा को कोई अधिकार नहीं होता। ऐसे में लोकसभा में स्थापित बहुमत दल की सरकार राज्यसभा में बहुमत न होने की स्थिति में भी किसी विधेयक को धन विधेयक का दर्ज़ा दिलवाकर (लोकसभा स्पीकर से) पारित करवा देते हैं ।
हाल ही में (1 फरवरी 2017) माननीय अरुण जेटली ने बजट प्रस्तुतिकरण के उपरांत वित्त विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया, जो कि 22 मार्च को लोकसभा से पारित हो गया और आज राज्यसभा से भी पारित हो गया।
इस विधेयक के संबंध में दो प्रकार के विवाद उभरकर सामने आए --
इस विधेयक के संबंध में दो प्रकार के विवाद उभरकर सामने आए --
© प्रथम_विवाद -
प्रथम विवाद इस बात का था कि इस वित्त विधेयक में करीबन 40 संशोधन प्रस्तुत किए गए जोकि अति महत्वपूर्ण संशोधन है, जिन पर दोनों सदनों में व्यापक व सार्थक बहस बहुत जरूरी थी लेकिन सरकार ने अंतिम क्षणों में इस वित्त विधेयक को धन विधयेक का दर्जा दिलवाकर बिना बहस के ही पारित करवा दिया जो कि न केवल संसदीय मूल्यों का हनन है बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के भी खिलाफ है ,इस प्रकार महत्वपूर्ण मुद्दों पर बिना बहस के कानून निर्माण की प्रक्रिया कानून निर्माण प्रणाली को अपने हाथ में लेने के समान है।
© दूसरा_विवाद
यह विवाद तब उभरा जब पता चला की इस वित्त विधेयक में कई ऐसे संशोधन शामिल किए गए जिन की परिभाषा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110, 117( 1) 117 (3 ) में नहीं है , उसके बावजूद भी इन संशोधन प्रस्ताव को वित्त विधयेक में स्थान दिया गया जोकि संसदीय प्रणाली एवं संविधान मूल्यों के लिए प्रतिकूल है।
इस विधेयक में प्रमुख विवादित संशोधन विषय इस प्रकार है---
१. राजनीतिक दलों की फंडिंग के संबंध में --
पहले से यह होता है कि अगर कोई व्यवसायिक कंपनी या औद्योगिक इकाई अग़र किसी राजनीतिक दल को चंदा देना चाहती है तो वह अपने पिछले 3 वर्ष के शुद्ध लाभ के औसत का 7.50 प्रतिशत तक चंदा दे सकती है , साथ ही साथ उस कंपनी द्वारा उस राजनीतिक दल का नाम उल्लेख करना आवश्यक था जिसे चंदा दिया गया ।
लेकिन वित्त विधेयक 2017 के नवीन प्रावधानों में 7.50 प्रतिशत तथा राजनीतिक दल के नाम उल्लेख का उपबंध हटा दिया गया एवं इलेक्ट्रोल बांड के रूप में एक नवीन प्रकार की वित्तीय व्यवस्था का प्रावधान भी सरकार द्वारा किया गया । यह संशोधन राजनीतिक पारदर्शिता की बजाय राजनीतिक भ्रष्टाचार को और बढ़ावा देगा ।
लेकिन वित्त विधेयक 2017 के नवीन प्रावधानों में 7.50 प्रतिशत तथा राजनीतिक दल के नाम उल्लेख का उपबंध हटा दिया गया एवं इलेक्ट्रोल बांड के रूप में एक नवीन प्रकार की वित्तीय व्यवस्था का प्रावधान भी सरकार द्वारा किया गया । यह संशोधन राजनीतिक पारदर्शिता की बजाय राजनीतिक भ्रष्टाचार को और बढ़ावा देगा ।
२.वित्त विधेयक के जरिए सरकार ने पैन कार्ड के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता तय की अर्थात आधार कार्ड के संपूर्ण डाटा अभी आयकर विभाग को देने होंगे, पहले भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय यह शंका जता चुका हैकि आधार कार्ड के डेटा की सुरक्षा बहुत जरुरी है ।
३. इस विधायक ने आयकर विभाग को अत्यधिक शक्तियां दी है , जैसे- बिना आला अधिकारियों की अनुमति के कोई भी आयकर अधिकारी कहीं पर भी बिना पूर्व सूचना के रेड लगा सकता है , इस संशोधन से ना केवल इंस्पेक्टर राज्य की अवधारणा स्थापित होगी बल्कि आयकर अधिकारी अपनी शक्तियों का दुरुपयोग भी करेंगे ।
४. इस वित्त विधयेक के जरिए सरकार ने कई ट्रिब्यूनल ,अपील ट्रिब्यूनल एवं अन्य अधिकरण का असंबंधित विलय कर दिया गया। जैसे- नेशनल हाइवे ट्रिब्यूनल का एविएशन अपील ट्रिब्यूनल में विलय कर दिया गया। अब कैसे संभव है कि एविएशन ट्रिब्यूनल का कोई जज हाईवे ट्रिब्यूनल के मामले सुनने में भी सक्षम होगा , क्योंकि एविएशन जज अपने क्षेत्र की जानकारी रखता है न कि हाईवे मामलों की।
सरकार द्वारा इस तरह हर महत्वपूर्ण मुद्दे को धन विधेयक बना कर कानून का रूप देने की यह प्रथा लोकतंत्र के लिए बहुत हानिकारक है वो भी ऐसी स्थति में जब वह कानून विषय धन विधेयक की परिभाषा में शामिल न हो।
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