16 April, 2017

सीरिया संकट

"दो महाशक्तियों के हितों के मध्य बर्बाद होता एक देश "


#चर्चा_में_क्यों?

कल अमेरिका ने भूमध्य सागर स्थित अपने नौसैनिक अड्डे से सीरिया पर करीबन सौ मिसाइलें दागी जिसकी वजह अमेरिका ने यह बताई हैं की सीरिया में बशर अल असद सरकार ने रासायनिक हथियारों की सहायता से नागरिकों का कत्लेआम किया है, जबकि असद सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि सीरिया में हुआ रासायनिक हमला विद्रोही समूह ने किया है , इसमें सीरिया सरकार का कोई हाथ नहीं है । असद की इस बात का समर्थन रूस सरकार ने भी किया है जबकि अमेरिका के इस कृत्य का समर्थन अब तक सऊदी अरब, इजराइल ,ब्रिटेन जैसे देशों ने किया है ।

#आखिर_घटित_क्या_व_क्यों_हो_रहा_हैं?

सीरिया में वर्ष 1971 से बाथ पार्टी की सरकार रही है , यह पार्टी एक परिवारवाद की विचारधारा से संचालित हो रही है । वर्ष 1971 से ही बशर अल-असद के परिवार के लोग सीरिया में शासन संचालन कर रहे हैं।
वर्ष 2011 में जब अरब के अंदर राजतंत्र के खिलाफ तथा लोकतंत्र की स्थापना के लिए #अरब_स्प्रिंग हुआ तब कई देश व सीरिया के नागरिक असद सरकार के खिलाफ विद्रोह करने लगे इन विद्रोहियों को सऊदी अरब व USA ने मदद की ताकि अरब विरोधी असद सरकार को वहां के नागरिक सत्ताच्युत कर दे लेकिन अधिकांश जनता ने अमेरिकी उद्देश्यों को भांप लिया और सत्ता विरोधी विद्रोह वापस ले लिया इससे अमेरीकी उद्देश्यों पे कुठाराघात हुआ और उन्होंने सीरिया सरकार के विद्रोहियों को समर्थन देना प्रारम्भ किया।
दरअसल हुआ यह था कि क़तर एवं इरान के मध्य एक तेल क्षेत्र अवस्थित है ,क़तर चाहता है कि उस तेल क्षेत्र से एक पाइप लाइन यूरोप भेजी जाए ताकि उसे आर्थिक लाभ हो सके, यूरोप भेजने के लिए यह पाइप लाइन सीरिया से होकर गुजरनी है ,ऐसे में सीरिया की अनुमति क़तर के लिए आवश्यक थी लेकिन सीरिया सरकार ने इस पाइपलाइन के लिए क़तर को अनुमति नहीं दी। बाद में जब इरान ने इसी तेल क्षेत्र के लिए पाइपलाइन की स्वीकृति चाही तो सीरिया की असद सरकार ने पाइपलाइन की स्वीकृति दे दी । इससे क़तर, सऊदी अरब एव अमेरिका क्रुद्ध हो गए और उन्होंने असद के विद्रोही समूहों को समर्थन देना प्रारंभ किया, और इस प्रकार सीरिया एक युद्ध का केंद्र बन गया ।

#इस_युद्ध_की_प्रकृति ?

■ सीरिया में इस युद्ध को आंशिक #गृहयुद्ध भी कहा जाता है क्योंकि यह असद सरकार तथा वहां की जनता के मध्य लड़ा जा रहा है।
■ इसे आंशिक #धार्मिकयुद्ध भी कहा जा रहा है क्योंकि एक तरफ असद के नेतृत्व में अलवित्ते समूह जिसे लेबनान का हिजबुल्ला तथा इरान का सिट्टे समूह समर्थन दे रहा है , वहीं दूसरी तरफ सुनी नेतृत्व में विद्रोही समूह लड़ रहे हैं ।
■ इसे #प्रॉक्सीवार भी कहा जाता है क्योंकि एक तरफ असद सरकार को रूस एवं ईरान समर्थन दे रहे हैं वहीं दूसरी तरफ विद्रोही ग्रुपों को अरब ,इराक ,तुर्की ,कतर तथा अमेरिका समर्थन दे रहे हैं।
इस प्रकार सीरिया के इस मैदान में मुख्य रूप से चार खिलाड़ी है -
★असद सरकार (रूस , ईरान व अधिकांश सीरियन समर्थित);
★ क्रांतिकारी दल (Rebale group) -जो पहले कभी असद सरकार की सेना का हिस्सा हुआ करते थे अभी वह रिबेल ग्रुप के रूप में ISISI की मदद से असद सरकार के खिलाफ लड़ रहे हैं ;
★कुर्दिश समूह- चूंकि यह सरकार को तो नहीं हटाना चाहते बल्कि उत्तर पूर्वी सीरिया में स्वायत्तता चाहते हैं और
★ विदेशी शक्तियां -एक तरफ रूस जोकि असद सरकार को पूर्ण समर्थन दे रही है दूसरी तरफ अमेरिका जो अरब, क़तर ,इराक तथा तुर्की जैसे 9 देशों के साथ मिलकर असद सरकार के खिलाफ विद्रोही समूह को सैन्य हथियार जैसी सहायता दे रहा है ।
यहां पर अमेरिका की दोगली नीति भी सामने आ रही है एक तरफ तो अमेरिका ISIS को मिटाना चाहता है वहीं दूसरी तरफ isis के साथ मिलकर असद सरकार के खिलाफ विद्रोही गुट को लगातार सैन्य सहायता भी दे रहा है।

मैं आपको बताना चाहूंगा कि आखिर क्यों अमेरिका और रूस सीरिया के मामले में मुख्य प्रतिद्वंदियों के रूप में सामने आए हैं ? ऐसे कौन से राष्ट्रीय हित है जो सीरिया के माध्यम से अमेरिका व रूस के पूरे होने हैं ?
©#अमेरिका_के_हित
★अमेरिका सीरिया में स्थायित्व चाहता है , अगर सीरिया में स्थायित्व स्थापित होता है तो सीरिया की जनता प्रवास नहीं करेगी बल्कि अपने देश में ही रहेगी जिससे शरणार्थियों की समस्या वैश्विक स्तर पर नही झेलनी पड़ेगी। वर्तमान हालात यह है कि सीरिया की करीबन 30% जनसंख्या पूर्वी यूरोप के माध्यम से अमेरिका की मुख्य सहयोगी देशों मैं शरणार्थियों के रूप में शरण लेने के लिए आवेदन कर चुकी है या आवासित हो चुकी हैं, ऐसे में अमेरिका अपने सहयोगी देशों के सामने आयी इस समस्या को दूर करना चाहता है ;
★फिलिस्तीन- इसराइल मामले में लेबनान आधारित आंतकवादी संगठन हिजबुल्लाह जो अभी असद सरकार को सहायता दे रहा है , यह आंतकवादी संगठन इजराइल का शत्रु संगठन है ऐसे में अमेरिका चाहता है कि सीरिया की इस परिस्थिति एवं भूमि का उपयोग करके हिजबुल्ला का खात्मा किया जाए ताकि अमेरिकी सहयोगी इज़रायल में शांति स्थापना में मदद मिलेगी;
★अमेरिका असद को हटाकर लोकतांत्रिक सरकार स्थापित करना चाहती है , ताकि वहां पर संचालित की जारी आंतकवादी गतिविधियों को रोककर इस क्षेत्र में शांति स्थापित की जा सके लेकिन इसके पीछे यह तर्क भी दिया जा रहा है कि एक तरफ अमेरिका ISIS को मदद कर रहा है और दूसरी तरफ आंतकवादी के खात्मे की बात कर रहा है;
★यह बात अमेरिका को भी ज्ञात है कि असद के हटने के उपरांत कोई मजबूत उत्तराधिकारी सीरिया में नहीं है इससे अंदेशा इस बात का भी है कि आगे अमेरिका कोई कठपुतली सरकार स्थापित करके सीरिया की संपूर्ण संसाधनों पर अपना कब्जा जमा देगा;
★अंदेशा इस बात का भी है कि कठपुतली सरकार स्थापित करके उदारीकरण की प्रक्रिया लागू करेगा जो अभी तक राज्य नियंत्रक अर्थव्यवस्था(समाजवादी) सीरिया में मौजूद है , जहां पर अभी भी समाजवादी नीति अपनाई हुई है । इस उदारीकरण की प्रक्रिया के बाद सीरिया का एक बड़ा बाजार यूरोपियन एवं अमेरिकी कंपनियों के लिए खुल जाएगा जिससे यूरोप एवं अमेरिका को आर्थिक लाभ मिलेंगे तथा एक बहुत बड़ा निर्यात बाजार भी प्राप्त हो जाएगा;
★अमेरिका रूस को चुनौती देकर मध्य एशिया और पश्चिम एशिया में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है;
★सीरिया की बर्बादी के पीछे अमेरिका का हित यह भी है कि ईरान को कमजोर करना चाहता है, क्योंकि सीरिया व ईरान का संगठन एक मजबूती का पर्याय बन चुका है इसलिए अमेरिका चाहता है कि सीरिया को बर्बाद करने से ईरान स्वतः कमजोर हो जाएगा, जिससे इरान की मध्य एशियाई देशों पर पकड़ कमजोर हो जाएगी जिसके परिणाम स्वरुप अरब के साथ मिलकर अमेरिका संपूर्ण मध्य एशिया पर अपना वर्चस्व स्थापित कर सकता है ;
★हाल ही मे पूर्वी भूमध्यसागर में अवस्थित लेवेंट क्षेत्र में बड़ी मात्रा में कई गैस बेसिन खोजे गए है यह क्षेत्र सीरिया प्रभाव वाला क्षेत्र है, अमेरिका इन गैस क्षेत्रों के साथ लेवेंट पर कब्ज़ा चाहता है ताकि संसाधनों के साथ साथ नेवल बेस भी बना दे।।।
©#रूस_के_हित
■भूमध्य सागर का स्थित एकमात्र ऐसा देश जो रूस का सहयोगी देश अभी भी बना हुआ है वह है सीरिया। ऐसे में रूस हमेशा से ही सीरिया के साथ चाहता रहा हैं;
■सीरिया के टारटोस बंदरगाह व लताकिया बंदरगाह पर ना केवल रूस ने एयरबेस स्थापित किए बल्कि अपना नेवल अड्डा भी स्थापित किया है ,और इन्हीं बंदरगाहों की सहायता से रूस तेल एवं गैस परिवहन को भी बढ़ावा देगा । अतः इन दोनों बंदरगाहों पर इस प्रकार के कार्य संचालन के लिए असद सरकार का सहयोग जरुरी है इसलिए रूस लगातार असद सरकार को बनाए रखने का प्रयास कर रहा है;
■ रूस की प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा बाजार यूरोप है। अगर यूरोप एवं मध्य एशिया के मध्य पाइप लाइन स्थापित हो जाती है , तो यूरोप रूस के बजाय मध्य एशिया से गैस खरीदी वो भी सस्ते दामों में करेगा। जिससे रूस से होने वाला यूरोपीय व्यापार निश्चिततः कम होगा जिससे रूस की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेंगे । अतः रूस चाहेगा कि सीरिया में असद सरकार को बनाए रखें ताकि असद सरकार किसी भी पाइप लाइन को बनाने की अनुमति नहीं देगा । सनद रहे की मध्य एशिया कि प्रत्येक पाइपलाइन को यूरोप पहुंचने के लिए सीरिया की जमीन का उपयोग करना ही होगा;
■रूस ने हाल ही में सीरिया के साथ विभिन्न प्रकार के तेल एवं गैस ब्लॉक को एक्सप्लोरेशन के लिए समझौते किए हैं ,और भविष्य में भी रूस इस प्रकार का एक्सप्लोरेशन सीरिया में करता रहेगा, इसलिए रूस सीरिया में असद सरकार को बनाए रखना चाहता है ताकि सीरिया के संसाधनों का उपयोग किया जा सके;
■ रूस का हित इस रूप में भी देखा जा रहा है कि इस क्षेत्र में रूस अपनी शक्तिशाली उपस्थिति दर्ज करा कर पश्चिमी देशों को चुनोती दे रहा हैं।।
©#भारत_पर_प्रभाव
भारत प्रत्यक्षतः सीरिया के इस मामले से प्रभावित नहीं हो रहा है लेकिन अप्रत्यक्ष प्रभाव अवश्य पड़ रहे हैं -
◆ भारत की अधिकांश ऊर्जा जरूरते गल्फ देशों व अरब देशो द्वारा पूरी की जाती है, गल्फ देशों में सीरिया एक महत्वपूर्ण देश है ,तो अगर सीरिया में किसी भी प्रकार की इंसर्जेंसी होती है तो भारत को प्राप्त होने वाला मध्य एशिया से तेल, महंगा हो सकता है जिससे महंगाई बढ़ने के आसार बने रहेंगे ।
◆शेयर मार्केट में भी अल्पकालीन गिरावट आ सकती है जैसा कि 7 अप्रैल 2017 को देखा गया 220 अंकों की गिरावट आई, लेकिन यह गिरावट केवल भारत में नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में देखी गई इसकी वजह यह रही कि एक निवेशकों की सामान्य प्रवृत्ति होती है कि जब भी माहौल अशांत होता है तब निवेशक अपना पैसा शेयर मार्केट से वापस खींच लेते हैं जिसकी वजह से अस्थाई रूप से शेयर मार्केट में गिरावट आती है।

धन्यवाद
Regards





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