19 April, 2017

वन बेल्ट वन रोड़ परियोजना (PART : 5)

वन बेल्ट वन रोड़ परियोजना (PART : 5)

वन बेल्ट वन रोड़ पर परियोजना के अंतिम भाग में मैं निम्न बातों को आलेख में शामिल करूँगा -

  • भारत का पक्ष
  • भारत की चुनौतियां एवं चिंताएं
  • भारत का प्रत्युत्तर पर प्रकाश डालूंगा।


भारत का पक्ष :-


  • भारत इस परियोजना के पक्ष में नहीं है क्योंकि इस परियोजना का एक भाग चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) भारत के जम्मू-कश्मीर के विवादित क्षेत्र पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) तथा गिलगिट बाल्टिस्तान क्षेत्र से होकर गुजर रहा है। 
  • ऐसे में भारत सरकार लगातार विरोध कर रही है की भारत के क्षेत्र से इस परियोजना को भारत की अनुमति के बिना गुजारना भारत की संप्रभुता के खिलाफ है।


भारत की चिंताएं एवं चुनौतियां :-


  • चीन की इस परियोजना के कारण चीनी वस्तुएँ कम कीमत पर तथा कम समय में यूरोप, अफ्रीका तथा एशियाई देशों में पहुंचेगी जिससे भारतीय वस्तुओं का निर्यात बाज़ार, जो कि चालू खाता घाटा (CAD) के कारण बन सकता है।
  • जिन-जिन देशों में यह परियोजना गुजर रही है उन सारे देशों में चीन की सॉफ्ट कूटनीति सफल होगी। जो कि कहीं ना कहीं भारतीय कूटनीति की असफलता का प्रतीक होगी। इसी सॉफ्ट कूटनीति के जरिये चीन इन क्षेत्रों में अपना राजनीतिक, आर्थिक प्रभाव स्थापित करेगा।
  • पड़ोसी देशों के बंदरगाहों, आधारभूत सरंचना के कार्य करवाया जाना तथा विभिन्न प्रकार की परियोजनाओं के संचालन किया जाना जैसे कार्यों के चलते चीन की पकड़ भारत के छोटे पड़ोसी देशों पर हो रही है, जो कि भारत के लिए चिंता का विषय है।
  • यह योजना पाकिस्तान को लगातार प्रोत्साहन दे रही है जिससे सीमा पर आतंकवादी गतिविधियां भी बढ़ने के आसार रहेंगे ।


भारत का प्रत्युत्तर :-

                                     OBOR परियोजना के प्रतियुत्तर के रूप में भारत ने निम्नलिखित कार्य किए हैं, जिनको निम्न बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है -

1. भारत एवं इरान के मध्य चाबहार समझौता :-


                         इरान के दक्षिण में सिस्तान बलूचिस्तान प्रांत में स्थित यह बंदरगाह अपनी सामरिक एवं आर्थिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है, इसे हारमुज़ जल संधि का मुख भी कहा जाता है। यह बन्दरगाह कई मायनों में भारत के लिए अहम है -

  • इस बंदरगाह के जरिए भारत की पहुंच मध्य एशिया तथा अफगानिस्तान तक बनेगी जिससे हमारी पाकिस्तान पर कोई निर्भरता नहीं रहेगी।
  • इस बंदरगाह के जरिए भारत ना केवल अफ्रीकन बाज़ार में अपना स्थान बना सकता है बल्कि यूरोपियन बाज़ार तक भी अपनी पहुंच बनाएगा।
  • इसी बंदरगाह के ज़रिये इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) का कार्य पूर्ण किया जाएगा।
  • इसी बंदरगाह के सहारे भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताएं आसानी से एवं सस्ते दामों में तथा कम समय में मध्य एशिया से पूर्ण करेगा।
  • यह बंदरगाह ग्वादर बंदरगाह से मात्र 70 किमी. दूर है, ऐसे में चीन द्वारा विकसित पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के जवाब के रूप में चबाहर को देखा जा रहा है।

2. अंतरराष्ट्रीय नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कोरिडोर (INSTC) :-




  • इस कॉरीडोर की अवधारणा वर्ष 2002 में आई। इस कोरीडोर के अंतर्गत मुंबई बंदरगाह से ईरान के चाबहार बंदरगाह, इरान के शहर तेहरान तथा बंदर अब्बास, आस्तरखां शहर तथा अज़रबेजान के बाकू शहर होते हुए रूस के मास्को शहर तक करीबन 7200 किलोमीटर की लंबाई में एक कॉरिडोर बनाया जाएगा।
  • यह कॉरिडोर जलयान, रेल मार्ग तथा सड़क मार्ग से निर्मित होगा इस कोरीडोर के जरिए आर्मीनिया, बेलारूस तजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ओमान, एस्टोनिया भी भारत से जुड़ जाएंगे।
  • इस कोरीडोर को बीजिंग-लंदन रेल कॉरिडोर के जवाब के रूप में देखा जा रहा है।


3. ट्रांस एशियन कंटेनर कॉरीडोर :-

  • करीबन 6000 किलोमीटर लंबाई में विकसित किया जाने वाला यह कॉरीडोर भारत को तुर्की से जुड़ेगा। यह पूर्ण रूप से मालवाहक कॉरिडोर होगा जो रेल मार्ग द्वारा जोड़ा जाएगा हाल ही में 15 मार्च, 2017 को हुई बैठक में पाकिस्तान, बांग्लादेश, इरान व तुर्की ने इस पर अपनी सहमति जता दी है। इसे भी चीन-लन्दन रेल लाइन का जवाब माना जा रहा है।


4. भारत एवं मालदीव:-

  • मालदीव के शासन अध्यक्ष ने भारत को सुनिश्चित किया है कि वह चीन को सैन्य बेस के लिए किसी भी प्रकार की कोई ज़मीन या बेस की अनुमति नहीं देगा, लेकिन हेलीकॉप्टर के लिए बेसमेंट की अनुमति देगा। भारतीय नेवी को अपने EEZ में स्थान देगा तथा भारतीय सेना के साथ में युद्धाभ्यास करेगा।
  • मालदीव के राष्ट्रपति कि इस सुनिश्चितता को मेरीटाइम सिल्क रूट के लिए सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा है ।


5. भारत एवं श्रीलंका :-

  • श्रीलंका सरकार द्वारा हाल ही में यह घोषणा की गई कि चीन के साथ हुए सभी समझौते पुनः समीक्षा के दायरे में लाये जाएंगे जिसमें हम्बनटोटा तथा कोलम्बो समझौता भी शामिल हैं। यह एक प्रकार से चीन की एम.एस.आर. योजना को पूर्ण करने के लिए चुनौती होगी।


6. मलक्का जलडमरू के निकट अवस्थित अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह को भारतीय नौसेना द्वारा लगातार विकसित किया जाना, नौ सेना द्वारा यहां युद्धक विमान, वायुपटिया निर्मित किया जाना एवं जेट एयरवेज स्थापित किया जाना चीन की एम.एस.आर नीति के जवाब के रूप में देखा जा रहा है।

7. भारत एवं बांग्लादेश के मध्य हुए समझौते के अनुसार चटगांव एवं मोंगला बंदरगाह जिनका विकास का कार्य चीन सरकार ने किया है, बांग्लादेश ने एक द्विपक्षीय समझौते के तहत भारतीय कार्गों वेसल को इनका उपयोग करने की छूट दी है। यह मोतियों की माला की नीति की असफलता को दर्शा रहा है।

8. भारत एवं वियतनाम :-

  • दक्षिणी चीन सागर के रवैयों को देखते हुए वियतनाम सरकार ने भारत की ओर रुख किया तथा एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया की भारत व वियतनाम के मध्य रक्षा सहयोग लगातार बढ़ाया जाएगा। वियतनाम सरकार ने ना केवल भारतीय नौसेना को वियतनाम बंदरगाह पर कार्य करने की अनुमति दी बल्कि भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने का समझौता भी किया। दक्षिणी चीन सागर में तेल खोज के लिए भी भारत को आमंत्रित किया गया। अगर वियतनाम इस प्रकार भारत के निकट आता है तो चीन की वन रोड़ योजना कभी पूर्ण नहीं हो पाएगी।


9. इसके अलावा जापान, ऑस्ट्रेलिया, फिजी तथा थाईलैंड के साथ भारत की इसी प्रकार के निकटतम संबंध चीन की वन बेल्ट वन रोड़ नीति के प्रतिकूल है।

                                    अतः वर्तमान सरकार को चाहिए कि उक्त संधि, समझौते एवं द्विपक्षीय वार्ताओं को धरातल पर लागू करने का प्रयास किया जाए तथा इन सभी देशों से अच्छे संबंध बनाए रखे जाएं ताकि चीन की इस योजना का प्रतिउत्तर प्रभावपूर्ण तरीके से दिया जा सके।

नोट :- वन बेल्ट वन रोड़ परियोजना को मैंने 5 भागो में विभाजित किया था जिसका यह अंतिम भाग था।

धन्यवाद




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