भारतमाला एवं सागरमाला- चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स का जवाब
चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नीति के जवाब के रूप में भारत सरकार ने भारतमाला एवं सागरमाला परियोजना प्रारंभ करने का निर्णय लिया। इसे भारत की नैकलैस योजना का नाम भी दिया गया है। इस आलेख में मैं भारतमाला एवं सागरमाला परियोजनाओं को विस्तृत रूप से आपके सामने लाने का प्रयास करूंगा।
यह आलेख दो भागों में लिखूंगा -
- प्रथम भाग भारतमाला
- द्वितीय भाग सागरमाला
भारत माला परियोजना
परिचय -
- इस परियोजना का प्रारंभ सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय भारत सरकार के अधीन वर्ष 2015 में किया गया। यह परियोजना उत्तरी भारत, पश्चिमी भारत तथा उत्तर-पूर्वी भारत को अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं के सहारे सड़क मार्ग द्वारा हिमालय के समानान्तर स्ट्रिंग बनाते हुए जोड़ने का कार्य करेगी।
- परियोजना के अंतर्गत करीबन 25,000 किलोमीटर लम्बाई के राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण होगा तथा 1500 पुल बनाए जाएंगे। यह राजमार्ग गुजरात के तटवर्ती क्षेत्रों से प्रारंभ होगा तत्पश्चात राजस्थान का सीमावर्ती क्षेत्र एवं पिछड़ा क्षेत्र, पंजाब का सीमावर्ती क्षेत्र, जम्मू-कश्मीर का सीमावर्ती क्षेत्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के धार्मिक स्थल, उत्तर प्रदेश, बिहार, सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर एवं मिज़ोरम (13 राज्य) को जोड़ेगा। (मानचित्र सलंग्न) संपूर्ण परियोजना में कुल 2.6 लाख करोड़ रुपए व्यय होने हैं।
इस योजना के प्रमुख फायदे इस प्रकार हैं :-
- सीमावर्ती क्षेत्रों तथा तटवर्ती क्षेत्रों में राजमार्ग निर्माण होने से ना केवल इन पिछड़े क्षेत्रों की आधारभूत सरंचना का विकास होगा बल्कि यह क्षेत्र ज़िला मुख्यालयों तक आसानी से जुड़ जाएंगे।
- इस परियोजना के सहारे भारत की संपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय स्थलीय सीमा राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ जाएगी जिसके परिणाम स्वरुप ना केवल घुसपैठ एवं तस्करी कम होगी बल्कि सीमा पर सतर्कता भी बनी रहेगी।
- इस परियोजना के पूर्ण होने से विभिन्न देशों जैसे नेपाल, बांग्लादेश, भूटान एवं म्यांमार से आने वाले अवैध शरणार्थी की समस्या तथा अवैध तस्करी जैसी गतिविधियों पर भी रोक सम्भव हो पाएगी।
- उत्तर-पूर्वी भारत जो अभी तक भारत की मुख्य भूमि से सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से अलग-थलग पड़ा था। इस परियोजना का निर्माण होने के बाद उत्तर-पूर्वी भारत आसानी से भारत के अन्य मुख्य शहरों से जुड़ जाएगा। जो कि भारत की राष्ट्रीय एकता बनाये रखने के लिए ज़रूरी है।
- मणिपुर में नागाओं द्वारा बार-बार की जाने वाली आर्थिक नाकाबंदी से भी निज़ात मिलेगी। क्योंकि यह परियोजना मणिपुर को भी राष्ट्रीय राजमार्गों से जोड़ेगी। अभी तक मणिपुर में केवल दो ही रास्ते हैं जो नागाओं के क्षेत्र से होकर गुजरते हैं। नागा लोग अपनी मांगे मनवाने के उद्देश्य से आर्थिक नाकाबंदी करते हैं।
- परियोजना के निर्माण से सीमावर्ती क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में रोज़गार सृजन होगा। जिससे लोगों को रोज़गार प्राप्त होगा। यह व्यक्तियों के जीवन स्तर को सुधारने का कार्य करेगा।
- इस परियोजना के जरिए 100 ज़िला मुख्यालयों को भी आपस में जोड़ा (कनेक्ट) जाएगा जिससे ना केवल अंतर राज्य व्यापार त्वरित रूप से होगा बल्कि आवागमन भी आसानी से होगा।
- इस परियोजना के जरिए कई पर्यटन स्थल आपस में जोड़े जाएंगे। जिससे पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलेगा जो कि केंद्र एवं राज्य सरकारों की राजस्व में वृद्धि करेगा।
- इस परियोजना के सहारे विभिन्न धार्मिक स्थलों को भी जोड़ा जाएगा। इससे न केवल इन धार्मिक स्थानों एवं विरासत का संरक्षण होगा बल्कि धार्मिक यात्राओं से आय भी प्राप्त होगी।
- इस परियोजना में केदारनाथ-बद्रीनाथ-यमुनोत्री-गंगोत्री को भी आपस में जोड़ने का प्रावधान है। जिससे चार धाम के यात्रियों की मुश्किलात तो कम होगी ही होगी साथ ही साथ इन धार्मिक स्थानों का संरक्षण एवं प्रोत्साहन भी होगा।
- इस परियोजना के निर्माण के बाद भारत की कनेक्टिविटी म्यांमार, थाईलैंड, लाओस सहित पूर्वी एशिया के कई देशों से आसानी से होगी। जिससे एक्ट ईस्ट पालिसी को बढ़ावा मिलेगा।
- युद्ध जन्य स्थितियां अगर उत्पन्न हो जाती हैं तो यह राजमार्ग युद्धक सामग्री पहुंचाने, सैन्य परिवहन तथा कई अन्य मामलों में लाभकारी सिद्ध होगा। अतः सामरिक दृष्टि से भी यह महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
चुनौतियां :-
उक्त फ़ायदों के साथ सरकार के सामने कई चुनौतियां भी हैं।
- वित्तीय संसाधनों का अभाव।
- सीमावर्ती क्षेत्रों में परियोजना निर्माण के उपरांत संचालन और रख-रखाव कठिन कार्य।
- जम्मू कश्मीर, उत्तर-पूर्वी राज्यों तथा पहाड़ी राज्यों में निर्माण कार्य न खर्चीला साबित होगा बल्कि दुष्कर भी होगा।
- भूमि अधिग्रहण की समस्या भी लगातार बनी रहेगी।
अतः सरकार को चाहिए कि उक्त समस्याओं और चुनौतियों का प्रभावीपूर्ण हल निकालकर समयबद्ध तरीके से परियोजना कार्य को पूर्ण किया जाए ताकि परियोजना लागत में वृद्धि न हो।
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